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________________ पर नहीं हैं, वे शांति कैसे पा सकेंगे? मैं देखता हूं कि लोग हिंसा करते हैं। उन्हें समझना होगा कि हिंसा कभी शांति का मार्ग नहीं हो सकती । क्या आग में कभी कमल खिल सकता है? स्वयं सुख-शांति चाहते हैं, पर दूसरों का सुख लूटते हैं। उन्हें धोखा देते हैं। उनका शोषण करते हैं। ऐसी स्थिति में कोई कैसे आशा कर सकता है कि दूसरे लोग उनके सुख में बाधक नहीं बनेंगे ? आर्थिक समृद्धि और शांति कुछ लोग सोचते हैं कि आर्थिक संपन्नता सुख और शांति का आधार है। इसलिए वे धन बटोरने में लगे रहते हैं। पर यह एक निरी भ्रांति है। आर्थिक समृद्धि से सुख-शांति का कोई सीधा संबंध नहीं है। यदि आर्थिक समृद्धि ही सुख-शांति का आधार होती तो अमेरिका आज सबसे अधिक सुखी होता, पर कहां है, वहां सुख और शांति ? वहां के राष्ट्रपति जॉनसन ने हाल में ही अपनी रिपोर्ट में बताया है कि यहां प्रत्येक मिनट में एक कार चोरी जाती है। प्रत्येक पचीस सैकंड में एक सेंध लगती है और प्रत्येक पचीस मिनट में एक बलात्कार होता है। आप ही बताएं कि क्या यही है सुख और शांति की स्थिति। हालांकि धन जीवन चलाने के लिए आवश्यक है, तथापि उसके साथ जब आत्म-नियंत्रण का अभाव रहता है तो वही दुःख और अशांति का कारण बन जाता है। धर्म : शांति का मार्ग आप पूछेंगे कि शांति का सही मार्ग कौन-स -सा है। शांति का सही मार्ग है- धर्म । अभी-अभी एक भाई ने कहा कि आचार्यजी ने हमको धर्म की नई परिभाषा दी। मैं सोचता हूं, मेरे पास नया कुछ नहीं है। धर्म की एकदम पुरानी परिभाषा मैंने आपके सामने रखी, पर वह आपको नई लगी । इसका एक कारण है। जो तत्त्व अत्यंत पुराना हो जाता है, वह कालांतर में सबको नया सा लगने लगता है। मैंने कहा कि क्रियाकांड, पूजा, आरती आदि के रूप में की जानेवाली उपासना ही धर्म नहीं है। भगवान भोले नहीं हैं बहुत-से लोगों की ऐसी अवधारणा है कि एक बार मंदिर में जाने मात्र से पिछले सारे पाप खत्म हो जाते हैं। यह श्रद्धा नहीं होती तो लाखों लोग तीर्थस्नान क्यों करते ? मुझे लगता है कि लोग पाप से नहीं, पाप के परिणाम से डरते हैं। इसी लिए पाप के फल से डरकर मंदिरों की सत्य की खोज Jain Education International For Private & Personal Use Only ११९ • www.jainelibrary.org
SR No.003107
Book TitleAage ki Sudhi Lei
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size13 MB
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