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________________ संघपरामर्शक मुनिश्री मधुकरजी मेरे स्थायी संरक्षक हैं। उनका कुशल दिशादर्शन मेरे विकास की विभिन्न राहें आलोकित करता रहा है। संसारपक्षीया बहिन साध्वी निर्वाणश्रीजी का इस संपादन-कार्य में सहज सहयोग प्राप्त हुआ है। वे मेरे जीवन की विभिन्न प्रवृत्तियों के साथ प्रेरक और पूरक के रूप में जुड़ी हुई हैं। हालांकि साधु-जीवन की अपनी कुछ मर्यादाएं होती हैं, तथापि इस सीमा में छोटी बहिन के रूप में उनका जो सहयोग मुझे प्राप्त है, वह मेरी संयम-यात्रा के लिए बहुत मूल्यवान है। मैं चाहता हूं, भाई-बहिन का यह तादात्म्य संबंध परस्पर सहयोग की राह से गुजरता हुआ ज्ञान-दर्शन-चारित्र की अभिवृद्धि में योगभूत बनता रहे। तुलसीप्रज्ञा के संपादक डॉ. परमेश्वर सोलंकी के श्रम का मूल्यांकन करता हूं, जिन्होंने परिशिष्ट क्रमांक ३ तैयार कर मेरे कार्य में सहयोग किया है। मेरे अनन्य सहयोगी मुनि मुनिसुव्रतजी का उल्लेख करना नहीं भूल सकता। सेवा का उनमें सहज संस्कार है। पूज्य गुरुदेव की सेवा में तो उन्हें सहज आत्मतोष मिलता ही है, छोटे-बड़े किसी साधु की सेवा भी वे अत्यंत प्रसन्नता से करते हैं। वे मुझे अत्यंत आत्मीय भाव से सहयोग दे रहे हैं। उनके इस सहयोग के कारण ही मैं पुस्तक-संपादन के लिए पर्याप्त समय निकाल पाया। पिछले दिनों एक वरिष्ठ समाजसेवी ने मुझसे कहा-'महाराज! मैं इन दिनों प्रवचन पाथेय पढ़ रहा हूं। वह पुस्तक बहुत उपयोगी है।' ऐसी ही अनुभूति विदेश में कार्यरत एक प्रबुद्ध इंजीनियर की है। मैं मानता हूं, आचार्यश्री के प्रवचन इतने हृदयग्राही हैं कि ऐसी अनुभूति किसी ग्राहकबुद्धिवाले पाठक को होना बहुत स्वाभाविक है। जैसाकि आचार्यप्रवर ने मेरे लिए अपने स्वकथ्य में लिखा है, मैं स्वयं भी इन प्रवचनों के सुनने और लिखने से बहुत लाभान्वित हुआ हूं। जिस प्रकार गुड़ सबके लिए मीठा होता है, उसी प्रकार आचार्यप्रवर के प्रवचन जन-जन के लिए मंगलकारी हैं। अस्तु, आगे की सुधि लेइ के रूप में प्रवचनों का यह संकलन लोगों के हाथों में है। लोग इसे पढ़ें, उस पर मनन करें और जागरण का संदेश हृदयंगम कर अपना जीवन सार्थकता की दिशा में मोड़ें-यही अपेक्षा है। .जैन विश्वभारती, लाडनूं -मुनि धर्मरुचि बसंत पंचमी, वि. सं. २०४८ - बारह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003107
Book TitleAage ki Sudhi Lei
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size13 MB
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