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________________ पांचवां मार्ग है-सूत्र और अर्थ का चिंतन करना। सूत्र संक्षिप्त होता है, अर्थ विस्तृत होता है। सूत्र का एक-एक शब्द लेकर उसकी अर्थयात्रा की गहराई में उतरनेवाला अपने निकट पहुंच जाता है। आत्म-सान्निध्य का यह सीधा राजपथ है। अंतिम मार्ग है-धृति। अधीर बननेवाला अपने लक्ष्य से भटक जाता है। उपासना, सेवा और तपस्या में अधीर बननेवाला साधना का परिणाम नहीं देख सकता। अधैर्य न केवल मोक्ष में बाधक है, बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में बाधक है। वैज्ञानिक लोग कितना धैर्य रखते हैं! चंद्रलोक की बातें सुनते-सुनते पचासों वर्ष हो गए हैं। तीस वर्ष तक तो इस बात का मखौल ही हुआ। अब भी वे पहुंचे नहीं हैं, तथापि बड़ी लगन से काम कर रहे हैं। मैं सोचता हूं कि इतना धैर्य आत्मा को खोजने में रखा जाए तो संभवतः केवलज्ञान हो जाए। प्राचीनकाल में ऋषि-महर्षि लंबे समय तक साधना करते थे। भगवान महावीर ने संकल्प किया कि जब तक केवलज्ञान नहीं मिलेगा, तब तक जीवित शरीर का व्युत्सर्ग करूंगा। गौतम बुद्ध ने संकल्प किया कि जब तक बोधिलाभ नहीं होगा, तब तक यह स्थान नहीं छोडूंगा। दुःखों से छुटकारा पाने के लिए ये मार्ग हैं। दृढ़ आस्था के साथ इन पर चलनेवाला ऐकांतिक और आत्यंतिक सुख प्राप्त करता है। ऐकांतिक का अर्थ है जिसमें विघ्न न हो। आत्यंतिक यानी जिसका अंत न हो। ऐसा असीम सुख ही मोक्ष है। यह बहुत बड़ा आदर्श है, परम आदर्श है। यहां तक पहुंचने के लिए और भी कई भूमिकाएं पार करना आवश्यक है। वे भूमिकाएं अग्रोक्त हैं • मार्गानुसारी • श्रद्धालु • व्रती • महाव्रती • अप्रमत्त • अवेदी • अकषायी-वीतराग • केवली • अयोगी। उपर्युक्त भूमिकाएं क्रमश: पार करता हुआ व्यक्ति मोक्ष तक पहुंच सकता है, सांसारिक दुःखों से छुटकारा प्राप्त कर सकता है। कदम-कदम बढ़े चलें बंधुओ! मंजिल हमारी सुनिश्चित है। मार्ग-दर्शन हमें तीर्थंकरोंआचार्यों द्वारा प्राप्त है। अब चलने का काम हमारा और आपका है। यहां यह प्रश्न बहुत महत्त्वपूर्ण नहीं है कि मंजिल कितनी दूर है। यह प्रश्न भी कोई महत्त्वपूर्ण नहीं है कि मार्ग सीधा है या टेढ़ा। प्रश्न यह महत्त्वपूर्ण है मुक्ति का मार्ग .१०१. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003107
Book TitleAage ki Sudhi Lei
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size13 MB
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