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________________ संपादकीय उट्ठ णो पाए - यह भगवान महावीर का संदेश है, बल्कि कहना यो चाहिए कि सभी तीर्थंकरों का संदेश है, समूची ऋषि परंपरा का संदेश है। ऋषि जागरण के प्रतीक होते हैं, जागरण की प्रेरणा होते हैं । वे स्वयं जागरण को जीते हैं और जन-जन को जागरण का संदेश देते हैं। इसलिए जागरण का यह संदेश उतना ही शाश्वत है, जितनी शाश्वत ऋषि-परंपरा । आचार्य श्री तुलसी भारतीय ऋषि परंपरा के एक उज्ज्वल नक्षत्र हैं। तेरापंथ धर्मसंघ उन्हें अनुशास्ता के रूप में पाकर गौरवान्वित हुआ है तो जैन - शासन उन्हें एक प्रभावक आचार्य के रूप में पाकर महिमामंडित बना है, पर इनसे भी विशिष्ट और व्यापक पहचान मिली है उन्हें एक मानवधर्म के आचार्य के रूप में। इसका आधार बना है- उनका जागरण संदेश | विभिन्न परिप्रेक्ष्यों में यह जागरण - संदेश कभी अणुव्रत के रूप में प्रतिध्वनित हुआ है तो कभी शांति- शोध और अहिंसा प्रशिक्षण के रूप में। कभी इसे प्रेक्षाध्यान की भाषा मिली है तो कभी जीवन - विज्ञान की । हालांकि आचार्यश्री तुलसी का जागरण - संदेश जीवन-जागरण का संदेश है पर उसका दायरा इतना व्यापक है कि व्यक्तिगत से लेकर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर तक उभरनेवाली समस्याओं का समाधान अनायास उसमें मिल जाता है। यही कारण है कि भले नई दिल्ली में राष्ट्रीय एकता परिषद की महत्त्वपूर्ण बैठक हो और चाहे इटली में धर्मगुरुओं की प्रतिनिधि सभा, आचार्यश्री की प्रत्यक्ष-परोक्ष उपस्थिति के लिए आग्रहभरा निवेदन रहता है; और व्यक्तिगत समस्याओं का समाधान पाने के लिए तो विभिन्न वर्गों, विभिन्न स्तरों के लोग सैकड़ों-हजारों की संख्या में उनकी प्रवचन - सभाओं में उपस्थित होते ही रहते हैं। मैं अनेक बार लोगों के मुंह से इस आशय की शब्दावली सुनता हूं कि आज आचार्यश्री ने समूचा प्रवचन मुझे लक्ष्य करके ही किया था। उनका प्रवचन सुनकर मेरी वर्षों की उलझन / समस्या नौ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003107
Book TitleAage ki Sudhi Lei
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size13 MB
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