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आदिवचन
उपन्यास जीवन के मनोभावों, अभिप्रेरणाओं, कल्पनाओं और जीवन के उतार-चढ़ावों का एक जीवन्त प्रतिबिम्ब है। उसे पढ़कर बहुत कुछ सीखा जा सकता है। उपन्यास लिखने की परम्परा प्राचीन रही है। वह धारावाहिक होता है। उसमें रोचकता होती है और आगे क्या, आगे क्या, यही उत्सुकता निरन्तर बनी रहती है। पढ़ते-पढ़ते जिसमें समय का बोध न हो और जिसके पढ़ने से ऊब की प्रतीति न हो वह वास्तव में उपन्यास होता है। वह ऐतिहासिक और काल्पनिक-दोनों प्रकार का होता है। यह तो उपन्यासकार पर निर्भर करता है कि वह कौन-सी विधा को अपनाए। अनेक उपन्यासकारों ने उपन्यास लिखने में अपनी लेखनी का उपयोग किया है। उनमें से एक प्रसिद्ध उपन्यासकार थे-वैद्य मोहनलाल चुन्नीलाल धामी। वे मूलत: गुजराती भाषा के उपन्यासकार थे। उन्होंने जैन संस्कृति, जैन इतिहास और जैन कथानकों को लेकर अनेक उपन्यास लिखे। इस कला से उन्होंने जनमानस को आन्दोलित किया और इसके माध्यम से जैन संस्कृति को जन-संस्कृति बनाने का प्रयास किया। वे अपने इस कार्य में सफल भी हुए हैं।
भगवान महावीर की पच्चीसवीं निर्वाण शताब्दी पर चन्दनबाला पर आधारित 'बन्धन टूटे' नाम से मेरा हिन्दी रूपान्तरित उपन्यास प्रकाश में आया था। लोगों ने उसकी भूरि-भूरि प्रशंसा की। लोगों की मांग और प्रार्थना रही कि आज की नवपीढ़ी और नवयुवकों की दिशा बदलने के लिए ऐसे अनेक उपन्यासों की जरूरत है। मैंने उनकी भावनाओं को समादृत करते हुए इस ओर ध्यान दिया और पुन: 'नृत्यांगना' नाम से हिन्दी रूपान्तरित दूसरा उपन्यास प्रकाश में आया। अब उसी उपन्यास का नवीनतम संस्करण 'आर्य स्थूलभद्र और कोशा' शीर्षक से जनता के सामने प्रस्तुत है । यद्यपि मैं मूल उपन्यासकार नहीं हूं, मूलत: उपन्यासकार मोहनलाल चुन्नीलाल धामी हैं। मैंने प्रस्तुत उपन्यास का गुजराती भाषा से
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