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________________ स्थूलभद्र का नाम सुनते ही कोशा का शरीर रोमांचित हो उठा। वह आसन से उठकर वातायन की ओर आयी और बोली- 'ओह ! तेरा उद्दालक! देखूं तो कैसा है ?' उसने वातायन से देखा । मंदाकिनी की उद्दामभरी लहरों पर एक नौका तैर रही थी । मध्य में दो नवयुवक बैठे थे। देवी के मन में प्रश्न हुआ कि इन दोनों में स्थूलभद्र कौन होगा ? चित्रा ने कहा- ‘देवी! देखो, जो हमारे प्रासाद की ओर बार-बार देख रहे हैं, वे संभवत: स्थूलभद्र के परम मित्र विष्णुगुप्त हैं और जो गौरवर्ण और सुदृढ़ काया वाले हैं, वे हैं स्थूलभद्र । उनकी दृष्टि नीची है.... और उनके दाएं कोने में...... 'तेरा उद्दालक !' कोशा के नयन स्थूलभद्र को पी जाना चाहते थे, किन्तु स्थूलभद्र की दृष्टि इस ओर नहीं थी । चाणक्य ने स्वाभाविक रूप से इस ओर देखा था। अचानक चाणक्य की दृष्टि रूपकोशा पर पड़ी। चाणक्य की तीव्र दृष्टि । रूपकोशा की आकुलता को चाणक्य क्या जाने ? का की गति तीव्र थी । रूपकोशा के नयनों में स्थूलभद्र की प्रतिमा समा जाए, इससे पूर्व नौका दूर निकल गई । 'क्या सोच रहे हो, मित्र ?' चाणक्य ने स्थूलभद्र से पूछा । 'जो कुछ तुमने कहा था, वह एक दृष्टि से सही है, किन्तु वह बात आत्मसात् नहीं हो रही है। मैं समझता हूँ कि तुम मेरे पिताजी को संतोष नहीं दे पाओगे ।' 'क्या आत्म-दर्शन की प्राप्ति के लिए ?' चाणक्य ने व्यंग्य में कहा । स्थूलभद्र सहज दृष्टि से चाणक्य को देखने लगा । चाणक्य ने कहा- 'क्या तुम्हारी संगीत-साधना बंधन नहीं है ?' 'नहीं, वह बन्धन नहीं है। वह मुक्ति की ओर ले जाने वाली प्रेरणा है ।' आर्य स्थूलभद्र और कोशा Jain Education International For Private & Personal Use Only ३२ www.jainelibrary.org
SR No.003105
Book TitleArya Sthulabhadra aur Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal C Dhami, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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