SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 283
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दूसरे दिन प्रात: कार्य से निवृत्त होकर कोशा अपनी छोटी बहन तथा दास-दासियों को साथ लेकर मुनि-दर्शन के लिए गई। मुनि को सबने वन्दना की। मुनि ने धर्मलाभ कहा। 'मुनिवर ! कुछ संदेह है। आप उनका निवारण करें।' 'देवी! संशय को प्रकट करो। उनके निवारण का प्रयत्न करूंगा ।' कोशा ने पूछा - 'मुनिवर ! वैभव और विलास से परिपूर्ण इस कामगृह में रहते हुए, उत्तेजना पैदा करने वाले भित्तिचित्रों को देखते हुए तथा ब्रह्मा को भी चंचल बना देने वाले नृत्यों को देखते हुए भी आप अपने मन को अचंचल और स्थिर रखने में कैसे सक्षम रहे ? इसका उत्तर मुझे अभी तक प्राप्त नहीं हुआ ।' 'भद्रे! तेरा प्रश्न अति उत्तम है। तेरे इस भवन में जब मैं चातुर्मास बिताने की कल्पना लेकर आया था तब मेरे मन में एक निश्चय हो चुका था कि बंधन और मोह के उपादान केवल क्षणिक सुख का आभास कराने वाले हैं। शाश्वत सुख का इनमें न भास है और न आभास। मैंने यह समझ लिया था कि संयम और ज्ञान की आराधना के बिना शाश्वत सुख की प्राप्ति नहीं हो सकती। मैं यह जानता था कि तेरे भवन पर आना मुनि - जीवन की कसौटी करना है । परन्तु मैंने एक आलंबन ढूंढ निकाला था। जैसे माता के समक्ष बालक निर्भय होकर रहता है, वैसी ही निर्भयता का मुझे तेरे सामने अनुभव होता था। तूने माना होगा कि मेरे प्रियतम आए हैं.... स्वामी आए हैं.... और मैंने माना था कि एक छोटा बच्चा अपनी ममतामयी मां के पास जा रहा है। जब से कुमार स्थूलभद्र ने अभिनिष्क्रमण किया है तब से वह अतीत को भूल चुका है। सारे सम्बन्धों को वह तिलांजलि दे चुका है। यदि मैं यहां मुनि का गर्व लेकर आया होता तो संभव है तेरा विलास मेरे पर प्रभाव डाल पाता । किन्तु मैं यहां बालक बनकर आया था, साधना का अभ्यास करने आया था.... माता की ममतामयी गोद में आया था। जबजब मैं तुझे देखता, तब-तब तेरी आंखों के सामने मां की मंगलमय मूर्ति उभर आती। छोटा बालक मां को किसी भी रूप में, किसी भी वेशभूषा में - आर्य स्थूलभद्र और कोशा Jain Education International For Private & Personal Use Only २७२ www.jainelibrary.org
SR No.003105
Book TitleArya Sthulabhadra aur Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal C Dhami, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy