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________________ तत्त्वसारः । Jain Education International झाणडिओ ह जोई जइ णो सम्वेय निययअप्पाणं । हु तो ण लहइ तं सुद्धं भग्गविहीणो जहा रयणं ॥ ४६ ॥ देहसु पडिबद्धो जेण य सोतेण लहइ ण हु सुद्धं । तचं वियाररहियं णिचं चिय झायमाणो हु ॥ ४७ ॥ मुक्खो विणासरूवो चेयणपरिवज्जिओ सयादेहो । तस्स ममत्ति कुणतो बहिरप्पा होइ सो जीओ ॥ ४८ ॥ रोयं सडणं पडणं देहस्स य पिच्छिऊण जरमरणं । जो अप्पाणं झायदि सो मुच्चइ पंचदेहेहि ॥ ४९ ॥ जं होइ भुंजियव्वं कम्मं उदयस्स आणियं तवसा । सयमागयं च तं जइ सो लाहो णत्थि संदेहो ॥ ५० ॥ भुंजतो कम्मफलं कुणइ ण रायं च तह य दोसं वा । सो संचियं विणासइ अहिणवकम्मं ण बंधेइ ॥ ५१ ॥ भुंजतो कम्मफलं भावं मोहेण कुणइ सुहमसुहं । जइ तं पुणोवि बंधइ णाणावरणादि अडविहं ॥ ५२ ॥ परमाणुमित्त एयं जाम ण छंडेइ जोइ समणम्मि । सो कम्मेण ण मुञ्च परमडवियाणवो सवणो ॥ ५३ ॥ सुदुक्खं पि सहतो णाणी झाणम्मि होइ दिढचित्तो । हे कम्मस्स तओ णिज्जरणहाइमो सवणो ॥ ५४ ॥ ण मुएइ सगं भावं ण परं परिणमइ मुणइ अप्पाणं । जो जीवो संवरणं णिज्जरणं सो फुडं भणिओ ॥ ५५ ॥ ससहावं वेदतो णिञ्चलचित्तो विमुक्कपरभावो । सो जीवो णायव्वो दंसणणाणं चरितं च ॥ ५६ ॥ जो अप्पा तं गाणं जं णाणं तं च दंसणं चरणं । सा सुद्धचेयणावि यं णिच्छयणयमस्सिए जीवे ॥ ५७ ॥ १४९ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003104
Book TitleTattvanushasanadi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1919
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size7 MB
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