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जैनधर्म में आस्तिकता के तत्त्व
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"आत्मा वा अरे द्रष्टव्यः श्रोतव्यो मन्तव्यो निदिध्यासितव्यः।" जो आत्मा को जान लेता है वह सबको जान लेता है। 'आत्मनिविज्ञाते सर्वमिदं विज्ञातं भवति ।" आत्मा का अस्तित्व ही सबसे मूल्यवान है-"आत्मनस्तु कामाय सर्व प्रियं भवति ।'
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