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तेरहवें संस्करण पर
जैसे-जैसे काल की लम्बाई बढ़ती है, वैसे-वैसे उसका आवरण सबको आवृत करता जाता है । किन्तु उन्हें अनावृत करता है, जिनका जीवन तपःपूत रहा है | आचार्य भिक्षु महान् तपस्वी थे। उनकी तपस्या का वलय इतना शक्तिशाली था कि उसके परमाणु हजारों वर्षों तक अपना प्रभाव सुरक्षित रख पाएंगे ।
आचार्य भिक्षु द्वारा जो सत्य अभिव्यक्त हुआ, वह इतना चिरन्तन था कि उसे शाश्वत की तुला में तोला जा सकता है, वह इतना सामयिक है कि उसे वर्तमान की धारा का स्रोत कहा जा सकता है।
'भिक्षु - विचार दर्शन' आचार्य भिक्षु के विचार - बिन्दुओं का एक लघु समाकलन है। यह मैंने उस समय लिखा जब आचार्य भिक्षु जनता की दृष्टि में सांप्रदायिक अधिक, दार्शनिक कम थे । वर्तमान संस्करण उस समय हो रहा है, जब आचार्य भिक्षु जनता की दृष्टि में दार्शनिक अधिक, साम्प्रदायिक कम हैं।
जनता ने आचार्य भिक्षु के विचारों को समझने में रुचि ली है । इसका अर्थ है कि लोग व्यवहार के धरातल से उतरकर नैश्चयिक सत्य तक पहुंचना चाहते हैं । इसकी फलश्रुति है कि बारहवां संस्करण जनता के हाथों में आ रहा है। इसमें कोई परिवर्तन या परिवर्धन नहीं किया गया है। वर्तमान की चिन्तनधारा ने आचार्य भिक्षु के विचारों को इतनी पुष्टि दी है कि दोनों चिन्तनधाराओं की तुलना की जा सकती है पर इसे मैं भविष्य के लिए छोड़ता हूँ ।
या संस्करण नए परिवेश में जैन विश्व भारती, लाडनूं द्वारा प्रस्तुत हो रहा है । वह मनोभिराम होने के साथ-साथ नयनाभिराम भी होगा ।
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-आचार्य महाप्रज्ञ
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