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१८८ : भिक्षु विचार दर्शन
परिणामों को इन शब्दों में गूंथा है
कुएं पर जाजिम बिछी है, चारों कोनों पर भार रखा हुआ है, कोई भुलावे में आ, उस पर बैठ जाए उसकी क्या गति होती है? वह कुएं में डूब जाता है। कुगुरु कुएं के समान है, जाजिम के समान उसका वेश है। जो वेश के भूलावे में आ जाता है, वह उसकी कुशिक्षाओं में डूब जाता है। कुगुरु भड़भूजे के समान है, उसकी मान्यता भाड़ के समान है अज्ञानी जीव घास-फूस के समान है
कुगुरु उन्हें मिथ्या विश्वासों के भाड़ में झोंकते हैं।' ३. बहुमत नहीं, पवित्र श्रद्धा चाहिए जन साधारण में बहुमत का अनुकरण करने की परम्परा रही है। सत्य के अन्वेषकों ने इस पर सदा प्रहार किया है। “मैं तो सबके साथ होऊंगा"-भगवान् महावीर ने कहा-यह बाल चिन्तन है। महात्मा गांधी ने कहा-बहुमत नास्तिकता है। आचार्य भिक्षु की उक्ति है
बहुमत के भरोसे कोई न रहे। निर्णय करो, परखो। लोक-भाषा में भी कहा जाता है'घी खाओ, घृत-पात्र नहीं।
१. आचार री चौपाई, १०,६-८
जाजम बिछाइ कूवा उपरे, चिहूं कांनी रे मेल्यो उपर भार। भोला वेसे तिण उपरे, ते डूब मरे रे तिण कूवा मझार॥ तिम कुगुर छे कूवा सारिषा, जाजम सम रे कने साधां रो भेष। त्यांने गुर लेख व बंदणा करे, ते डूबे रे मूरख अन्ध अदेख रे॥ कुगुर भडभुंजा सारिषा, त्यांरी सरधा हो खोटी भाड समाण।
भारीकरमां जीव चिणा सारिषा, त्यांने झोखे हो खोटी सरधा में आण॥ २. उत्तराध्ययन. ५/७
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