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________________ - संघ-व्यवस्था : १८५ शेष-काल में तातो उसे बड़े कहें लोलुपतावश घूमत बहुत साथ के बिना न रहे। कुछ साधु क्या करते हैं- “रूखे क्षेत्र में उपकार होता है तो भी वहां नहीं रहते। अच्छे क्षेत्र में उपकार नहीं होता है तो भी पड़े रहते हैं। ऐसा नहीं करना है। चतुर्मास अवसर हो तो किया जाए पर शेष-काल में तो रहना ही चाहिए। किसी के खान-पान सम्बन्धी लोलुपता की शंका पड़े तो उसे बड़े कहें वैसा करना चाहिए। दो साधु विहार करें, बड़े-बड़े, सुख-सुविधाकारी क्षेत्रों में लोलुपतावश घूमते रहें, आचार्य जहां रखें, वहां न रहे-इस प्रकार करना अनुचित है। जहां बहत साथ रहें वहां दुःख माने और दो में सुख माने-लोलुपतावश यह नहीं करना चाहिए।" ग्राम और नगर की जो समस्या आज है उसका अंकन वे तभी कर चुके थे। गांवों की अपेक्षा शहरों में आकर्षण-शक्ति अधिक होती है। पदार्थों को साज-सज्जा जितनी शहरों में होती है, उतनी गांवों में नहीं होती। धार्मिक उपकार जितना गांवों में होता है, उतना शहरों में नहीं होता। महात्मा गांधी ने भी गांवों पर अपनी दृष्टि केन्द्रित की थी। राजनीतिक संस्थाएं भी बार-बार ग्राम-सम्पर्क के लिए पदयात्रा को व्यवस्था किया करती हैं। ___ आचार्य भिक्षु का ग्राम विहार का सूत्र हमारे आचार्यों ने क्रियान्वित किया है। साधु-साध्वियों को विहार-क्षेत्र का जो पत्र सौंपा जाता है, उसमें चतुर्मास के लिए एक क्षेत्र निश्चित होता है और उसमें उसके आसपास के गांवों के नाम भी लिखे होते हैं। उस क्षेत्र में चतुर्मास करने वाला साधु उसके समीपवर्ती गांवों में जाता है, रहता है और कहां कितनी रात रहा, उसकी तालिका आचार्य से मिलने पर उन्हें निवेदित करता है। आचार्य भिक्षु ने गांवों में विहार करने की ओर गण का ध्यान खींचकर साधु-संघ पर बहुत उपकार किया है। विहार के सम्बन्ध में उन्होंने दूसरी बात यह कही-“आचार्य की आज्ञा या विशेष स्थिति के बिना साधु-साध्वियां एक क्षेत्र में विहार न करें।" जिस गांव में पहले साध्वियां हों वहां साधु न जाएं और जहां साधु हों वहां साध्वियां न जाएं। पहले पता न हो और वहां चले जाएं तो एक रात से १. लिखित : १८५० २. वही, १८५० ३. वही. १८५० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003095
Book TitleBhikshu Vichar Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages218
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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