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________________ संघ-व्यवस्था : १६३ आचार्य अपने उत्तराधिकारी के निर्वाचन में बहुत सूक्ष्मता से पर्यालोचन करते हैं। आचार्य के निर्वाचन में इन बातों पर विशेष ध्यान दिया जाता है (१) आचार-कुशलता, (२) गण-निष्ठा, (३) अनुशासन की क्षमता, (४) दूसरों को साथ लिये चलने की योग्यता और (५) ज्ञान और व्यावहारिक निपुणता। ___वर्तमान आचार्य को विश्वास हो जाता है और वे अपनी आयु के अन्तिम समय के लगभग या उससे पहले भी जब उचित लगे, तब वे एक पत्र लिख निर्वाचित मुनि को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर देते हैं। आचार्य भिक्षु ने भारमलजी को अपना उत्तराधिकारी चुनते समय जो लिखत' लिखां, उसी में वर्तमान युवाचार्य का नाम जोड़ एक प्रति लिखी जाती है और उसमें वर्तमान के सभी साधु-साध्वियां अपने हस्ताक्षर करते हैं। यह कार्य उनकी सहर्ष स्वीकृति का सूचक होता है। वर्तमान आचार्य की उपस्थिति में युवाचार्य का कार्य आचार्य जो आज्ञा दे उसी को क्रियान्वित करना होता है। आचार्य के स्वर्गवास होने के पश्चात् उनके सारे अधिकार युवाचार्य के हस्तगत हो जाते हैं। गण द्वारा विधिपूर्वक एक ‘पट्टोत्सव' मनाया जाता है और आचार्य का बहत सम्मान किया जाता है। आचार्य का इतना सम्मान, मेरी कल्पना नहीं है, कहीं देखने को मिले। आचार्य गण के साधु-साध्वियों को उसी शरीर के अवयव मानते हैं। पेट और शेष अवयवों में संघर्ष हो तो समूचे शरीर को क्लेश होता है। आहार जुटाना पेट का काम नहीं है तो आहार को पचाकर पोष देना शेष अवयवों का काम नहीं है। दोनों अपना-अपना कार्य करते हैं तब शरीर स्वस्थ रहता है, शक्ति बढ़ती है और सौन्दर्य खिलता है। आचार्य भिक्षु की व्यवस्था का प्राण यह सापेक्षता ही है। गणी का कार्य है, गण में समान आचार, समान विचार और समान प्ररूपणा को बनाए रखना। आचार और प्ररूपणा की समानता का मूल विचारों की समानता है। जैसा विचार होता है वैसा आचार बनता है और वैसी ही प्ररूपणा को बनाए रखना। आचार और प्ररूपणा की समानता का मूल विचारों की समानता है। जैसा विचार होता है वैसा आचार बनता है और वैसी ही प्ररूपणा की जाती है। विचारों में अन्तर आता है तब आचार और प्ररूपणा में भी भेद आ जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003095
Book TitleBhikshu Vichar Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages218
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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