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________________ मृत्यु का दर्शन : समाधिमरण जो लोग जीवन में बहुत बुराइयां करते हैं, निरन्तर भ्रष्टाचार में डूबे हुए हैं, पदलोलुप हैं, मूर्च्छा से घिरे हुए हैं, उनके सामने भी यह प्रश्न उभरता होगा— आखिर यह सब क्यों ? यह सच्चाई है - सब कुछ यहीं धरा रह जाएगा। यदि इस प्रश्न के संदर्भ में व्यक्ति अपने जीवन-व्यवहार की मीमांसा करे तो उसे एक नया दर्शन, रूपांतरण का सूत्र प्राप्त हो जाएगा । सेठ और संन्यासी एक घुमक्कड़ संन्यासी घूमते-घूमते किसी गांव में पहुंचा। वह बहुत प्रसिद्ध संन्यासी था। गांव के लोग उसके पास गए। उन्होंने संन्यासी से निवेदन कियामहाराज ! हमारे गांव में और सब ठीक है किंतु एक समस्या है। हमारे गांव में एक सेठ है, वह बहुत धनी है पर कंजूस है, मक्खीचूस है। उसे आप समझा दें तो गांव का कल्याण हो जाए। संन्यासी ने कहा- मैं समझाने की कोशिश करूंगा । वह सेठ भी संन्यासी के पास आया। संन्यासी ने पूछा- कुछ धर्म करते हो ? महाराज कुछ भी नहीं करता । कभी दूसरों का काम भी करते हो ? नहीं महाराज ! क्या मेरा एक काम करोगे ? महाराज ! आप संन्यासी हैं। आपका काम जरूर कर दूंग संन्यासी ने अपने झोले से एक सुईं निकाली। उसे सेठ के हाथ में देते हुए कहा— सेठजी ! यह सुईं आप रखें। जब मैं मर जाऊं, आप भी मर जाएं, तब यह सुईं अगले जन्म में मुझे लौटा दें । सेठ यह सुनकर हक्का-बक्का रह गया। उसने कहा— महाराज ! आपने कितनी भोलेपन की बात कही है। मरने के बाद शरीर भी साथ नहीं चलता तो फिर मैं सुईं कैसे ले जाऊंगा ? ८३ अरे ! तुमने इतनी संपत्ति अर्जित की है। कुछ तो साथ में चलेगी ? नहीं महाराज ! कुछ भी साथ नहीं रहेगा । सेठजी ! जब सब यहीं रह जाएगा तब इस धन को क्यों नहीं बांटते हो ? इससे गांव का भला क्यों नहीं करते हो ? सेठ की आंख खुल गई । उसकी मूर्च्छा पर एक प्रहार हुआ और वह गांव के कल्याण के लिए उद्यत हो गया । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003093
Book TitleRushabh aur Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages122
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size5 MB
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