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________________ ४६ ऋषभ और महावीर पदार्थ की प्रकृति आस्वासन राजनीति का धर्म है। जो राजनेता आश्वासन देना नहीं जानता, वह कुशल राजनेता नहीं होता। चर्चिल की भाषा में कुशल-राजनीतिज्ञ वह है जो प्रात: एक बात कहता हैं, दोपहर में उस बात को बदल देता है और शाम को यह सिद्ध कर देता है कि मैंने जो प्रात:काल कहा, वह भी ठीक है और जो मध्याह्न में कहा, वह भी ठीक है। पदार्थ के जगत् में राजनीति भी आएगी, व्यवस्थाएं भी आएंगी, उतार-चढ़ाव और विषमता भी आएगी। यह पदार्थ की प्रकृति है। इसे रोका नहीं जा सकता। पदार्थ के जगत् में इसका होना अनिवार्य है। यह व्याप्ति बन सकती है-जहां-जहां पदार्थ का जगत् वहां-वहां विषमता । जहां जहां विषमता, वहां-वहां पदार्थ का जगत् । हमारा यह अनुमान, यह व्याप्ति कहीं खण्डित नहीं होगी। केवल आत्मा का जगत् ऐसा है जहां समता की बात की जा सकती है। पुराना आयाम : नया आयाम भगवान् ऋषभ ने पदार्थ जगत् को व्यवस्थित कर दिया। पदार्थ की सम्यक् व्यवस्थापना के बाद ऋषभ ने आत्मा या समता का एक नया आयाम प्रस्थापित किया। उन्होंने पुराने आयाम की उत्थापना कर नए आयाम की प्रस्थापना नहीं की। पदार्थ के बिना समाज का काम नहीं चलता। उसकी उत्थापना कैसे की जा सकती है? कुछ व्यक्तियों ने आचार्य भिक्षु से कहा- भीखणजी ! आप मूर्ति को उठा रहे हैं, मूर्ति की उत्थापना कर रहे हैं। आचार्य भिक्षु ने तपाक से जवाब दिया-मूर्ति इतनी भारी होती है कि उसे अकेला आदमी उठा नहीं सकता। मैं उसे कैसे उठा सकता हूं? जरूरी है प्रतिपक्ष ऋषभ ने एक नया आयाम खोला । जगत् दो भागों में विभक्त हो गया—पदार्थ का जगत् और आत्मा का जगत्, स्थूल जगत् और सूक्ष्म जगत्, मूर्त जगत् और अमूर्त जगत् । इन दोनों के बीच संतुलन बनाना होगा । स्थूल और सूक्ष्म, पदार्थ और आत्मा, मूर्त और अमूर्त के संतुलन से ही समस्याएं समाहित होंगी। हमें पदार्थ से कुछ लेना देना नहीं है, यह सोचना सही नहीं है । पदार्थ के बिना व्यक्ति का काम नहीं चलता, जीवन की यात्रा नहीं चलती। यदि हम केवल पदार्थ में उलझे रहे तो समस्याएं उलझती चली जाएंगी। समस्या को सुलझाने के लिए प्रतिपक्ष को खड़ा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003093
Book TitleRushabh aur Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages122
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size5 MB
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