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राजतंत्र का सूत्रपात
ने हाकार नीति का प्रवर्तन किया। उससे पहले कोई दंड नहीं था, दण्डनीति नहीं थी। विमलवाहन ने हाकार नीति के द्वारा समाज को अनुशासित बनाया। हां ! तूने यह किया'- यह दण्ड मृत्युदण्ड से भी ज्यादा था। उन्होंने जहां 'हां' कह दिया वहां सारे अपराध समाप्त हो जाते थे किन्तु समय के साथ समस्याएं तेजी से बढ़ती चली गईं, जनता का मानस बदलता चला गया। उस समय 'हां' कहने का अर्थ था मौत । यह हाकार नीति दूसरे कुलकर चक्षुष्मान् तक प्रभावी रही। तीसरे कुलकर यशस्वी और चौथे कुलकर अभिचंद्र के युग में हाकार नीति ने अपना प्रभाव खो दिया। 'हा' कहना सामान्य बात हो गई। अपराध उससे आगे बढ़ गए। अपराध का कारण
अपराधों का भी अपना एक विज्ञान है। अपराध किस प्रकार बढ़ते हैं और क्यों बढ़ते हैं ? किन परिस्थितियों में बढ़ते हैं ? किस प्रकार की मानसिक परिस्थिति, किस प्रकार की शारीरिक रचना, किस प्रकार के शारीरिक रसायन और किस प्रकार
का वातावरण-ये सब मिलकर अपराधों को जन्म देते हैं। ये सारे पहलू अपराध से जुड़े हुए हैं। उस युग में ये सारी परिस्थितियां बदलने लगीं, शरीर-रचना में थोड़ा-थोड़ा अन्तर आने लगा, मानसिक संरचना में भी थोड़ा-थोड़ा अन्तर आने लगा। जब शरीर संरचना और मानसिक संरचना-दोनों बदलते हैं तब बाहरी वातावरण बदलने लग जाता है, अपराध बढ़ने लग जाते हैं। माकार नीति
अपराधों की वृद्धि से यौगलिक जनता घबरा उठी। कुछ व्यक्ति यशस्वी के पास आए। उन्होंने निवेदन किया-महाराज ! अपराध बढ़ रहे हैं। हाकार नीति का प्रभाव कम हो गया है। अब 'हा' अपराध रोकने में अप्रभावी बन रहा है। आप दूसरा उपाय निकालें। यशस्वी ने सोचा-अपराधों को रोकने के लिए दूसरा उपाय निकालना चाहिए। उन्होंने 'हा' के स्थान पर 'मा' शब्द का प्रयोग किया। 'मा' शब्द 'हा' से भी शक्तिशाली बन गया। शब्दों का भी अपना प्रभाव होता है । यदि शब्दों के प्रभाव का इतिहास लिखा जाए तो उसमें 'हा' और 'मा' का इतिहास भी लिखा जाएगा। शब्द का बहुत प्रभाव होता है । 'हा' के स्थान पर 'मा' शब्द प्रभावी बन गया। यह दवा चमत्कारी बन गई। जहां छोटा अपराध होता वहां 'हा' शब्द का प्रयोग किया जाता और जहां गम्भीर अपराध होता वहां 'मा' शब्द का प्रयोग होने लगा। ‘मा' बहुत कड़ा दंड माना जाने लगा। यशस्वी को संतोष की अनुभूति हुई।
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