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________________ ऋषभ का अवतरण समुद्र में हिमखंड तैरते रहते हैं । उसका थोड़ा-सा सिरा ऊपर होता है, बर्फ का पहाड़ भीतर चलता है। देखने वाला सिरे को देखता है, भीतर नहीं देखता। प्रत्येक व्यक्ति इस विश्व के महासमुद्र में हिमखण्ड जैसा है। हमें ऊपर का सिरा देखाई देता है पीछे छिपा सिरा दिखाई नहीं देता। हम केवल वर्तमान को जानते हैं, अतीत को नहीं जानते । अतीत को जाने बिना वर्तमान को ठीक से नहीं जाना जा सकता। वर्तमान मात्र अभिव्यक्ति है। जो प्रकट होता है, उसके पीछे क्या है, कितना है, इस बात को जानना बहुत जरूरी है। अध्यात्म ने इस बात को जाना। उसने व्यक्ति को मात्र हिमखंड का सिरा नहीं माना, पूरा हिमखंड माना। वर्तमान : अभिव्यक्ति का क्षण वर्तमान के पीछे कितना अतीत जुड़ा हुआ है, इसका भी बहुत मूल्य है। क्या कोई ऋषभ अतीत के बिना ऋषभ बन सकता है? यह कभी संभव नहीं है । कोई भी व्यक्ति केवल वर्तमान के आधार पर ऋषभ नहीं बन सकता। अतीत में साधना करते-करते अभिव्यक्ति का एक क्षण आया और हमारे सामने ऋषभ का अवतरण हो गया। हमने अभिव्यक्ति के क्षण को देखा है किन्तु उसके पीछे जो अतीत है, जो साधना है, उसे देखना भी जरूरी है। प्रत्येक व्यक्ति के मन में भावना जागती हैमैं बड़ा बनूं । यह महत्त्वाकांक्षा हो सकती है। महत्त्वाकांक्षा का होना कुछ अर्थों में बुरा भी नहीं है। किन्तु कोई भी महत्त्वाकांक्षा तब पूरी होती है जब उसके पीछे अतीत का योग होता है। अगर अतीत जुड़ा हुआ नहीं है तो कोरी महत्त्वाकांक्षा काम नहीं देती। वह निर्माण के स्थान पर विध्वंस कर देती है। निर्माण में समय लगता है। तोड़ो मत : जोड़ते रहो एक व्यक्ति ने पूछा- भगवान् की शक्ति ज्यादा है या शैतान की। मैंने उत्तर दिया- भगवान् की शक्ति ज्यादा है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003093
Book TitleRushabh aur Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages122
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size5 MB
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