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________________ १०४ ऋषभ और महावीर महावीर ने कितने कष्ट सहे, यह जानना महत्त्वपूर्ण है किंतु इससे भी अधिक यह जानना महत्त्वपूर्ण है-उन्होंने कष्टों को कैसे सहा। महावीर ने कितने कष्ट सहे, इसे हम जान लेते हैं, किन्तु महावीर ने कष्ट कैसे सहे, इस बात को भुला देते हैं। महावीर ने कष्ट सहे, इससे हमें क्या मिलने वाला है ? सहने के गुर क्या थे? वह कौन-सी चाबी थी, जिसके द्वारा यह ताला खोला गया? उन्हें कष्ट कष्ट नहीं लगा, वह आनन्द में बदल गया। यदि हम इन सूत्रों को खोजने में सफल बनते हैं तो महावीर के जीवन से कुछ सीख सकते हैं। जिन लोगों ने इस दिशा में ध्यान केन्द्रित किया है, उन्होंने कष्टमुक्ति का मार्ग पाया है। श्रद्धा है आत्मा के सात जुड़ना राणावास चातुर्मास में प्रेक्षाध्यान का शिविर चल रहा था। श्रीडूंगरगढ़ की एक वृद्ध महिला असाम से उपासना करने के लिए आई । बहनों ने उनसे कहा-आप शिविर में भाग ले लें। उस वृद्ध महिला ने कहा- मेरा हाथ टूटा हुआ है । मैं शिविर में कैसे भाग ले सकती हूं? मैंने सुना है-शिविर में अपना कार्य अपने हाथ से करना होता है और मैं पानी का गिलास भी नहीं उठा सकती। इस स्थिति में शिविर में रहना कैसे संभव है ? बहनों ने कहा- यदि आपकी शिविर में रहने की इच्छा हो तो हम आपका सहयोग कर देंगी। बहनों के आग्रह पर वह वृद्ध महिला शिविर में रह गई । उस शिविर में भाव परिवर्तन के प्रयोग चले। प्रवचन का मुख्य विषय भी यही था । उस महिला ने चार-पांच दिन प्रवचन सुना, प्रयोग किए । उसमें आश्चर्यजनक परिवर्तन आ गया। जिन हाथों से वह गिलास नहीं उठा सकती थी, उन हाथों से वह कपड़े धोने लगी, चाकू से सब्जी काटने लगी, अपना सारा काम स्वयं करने में सक्षम बन गई। यह बात समझ से परे है किन्तु जो आंखों के सामने प्रत्यक्ष है, उसे कैसे नकारा जा सकता है? जिसमें आस्था या संकल्प का बल जाग जाता है, जिसमें भक्ति और श्रद्धा का उत्कर्ष होता है, उसके रसायन बदल जाते हैं। श्रद्धा, आस्था, भक्ति और संकल्प का जागरण कष्टों को सहने की शक्ति देता है। अपनी आत्मा के साथ जुड़ जाना ही सच्ची श्रद्धा है । भगवान् महावीर अपनी आत्मा के प्रति समर्पित हो गए, उसके साथ जुड़ गए। उन्होंने कष्ट को सहन करने का, उन पर विजय प्राप्त करने का सूत्र हस्तगत कर लिया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003093
Book TitleRushabh aur Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages122
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size5 MB
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