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तो पुराने बंधे हुए कर्मों का कितना ही उपचय हो, वह टूटने लग जाता है । पारा सोना बन गया । नये पाप कर्म तीव्र नहीं बंधेंगे, यह तो एक बात हो गयी । जो पुराना संचय है, जो असत् है वह सत् में बदल जाता है, अशुभ शुभ में बदल जाता है । पाप पुण्य में बदल जाता है । यह नयी बात महावीर ने कही कि कर्मों को बदला जा सकता है। कर्मों की उदीरणा की जा सकती है । कर्म कब उदय में आएगा ? कर्म का भंडार कब खाली होगा ? यह अनन्तकाल की बात हो जाती है । किन्तु महावीर ने कहा - अपने परिणामों की ऐसी श्रेणी निर्मित करो जिसमें न राग हो और न द्वेष हो । कर्मों की उदीरणा करो, बंधे हुए कर्मों को खींचो और तोड़ते जाओ। विपाक की प्रतीक्षा मत करो । पहले ही उन्हें समाप्त करते जाओ । यह परिवर्तन का सिद्धान्त कर्म पर बहुत बड़ा अंकुश है । तीसरी बात - विपाक की सापेक्षता । कोई भी विपाक निरपेक्ष नहीं होता । वह देश, काल, भाव, भव, पुद्गल, पुद्गल परिणाम - इन सबके माध्यम से होता है | साधना के द्वारा हम निमित्तों को दूर करें जो विकास में बाधक बनते हैं । हम ऐसे निमित्तों को विकसित करें जो कर्म के विपाक को दूर कर सकें । विपाक निमित्तों से होता है । यह विपाक की सापेक्षता कर्म पर अंकुश है ।
साधना करने वाला व्यक्ति, जिसमें साधना की थोड़ी-सी भी रुचि जाग जाए वह कर्मशास्त्र के इन गूढ़तम रहस्यों को जाने और जानने के बाद अध्यात्मशास्त्र के द्वारा आध्यात्मिक चेतना को पूर्णतः जागृत कर साधना में सफल बने ।
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