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है यह तो। मैं भी हल्का हो जाऊं। उपाय अच्छा है।' थोड़ी देर बैठा। परन्तु वह यह नहीं जानता है कि ऊपर क्या लदा हुआ है ? ऊपर थी कपास। ज्यों ही पानी में इधर-उधर लेटा, बोरी भीग गयी। जो भार पहले था, उससे भी बहुत ज्यादा भार हो गया। दुगुना-चौगुना भार हो गया। उठा तो हल्का होने की जगह और अधिक भारी हो गया था।
यह विवेक जब साधना में नहीं होता तब हम प्रयत्न करते हैं हल्का होने का और जाने-अनजाने भारी बन जाते हैं। इसलिए बहुत ही अन्तर्दृष्टि की, सूक्ष्मदृष्टि की आवश्यकता होती है, साधना के मार्ग में। यदि हम ठीक विवेक नहीं कर पाते कि कहां कैसे हल्का होना होता है और कैसे भार को मिटाना होता है, इस दृष्टि की सम्पन्नता आये बिना शायद ऐसा भी हो जाता है कि हल्का होने के स्थान पर भार और अधिक बढ़ जाता है। और ऐसा लगता है कि चले थे हल्का होने के लिए और भारी बन गये।
ज्ञातासूत्र का प्रसंग है। सुमाला ने सोचा था कि मैं हल्की बनें । साध्वी बनं । किन्तु हल्का बनने का मंत्र हाथ नहीं लगा। काफ़ी भारी बनते-बनते इतनी भारी बन गयी कि एक दिन उसके मन में विकल्प आया कि जब मैं गृह में थी, तब कितनी स्वतंत्र थी, और जब से मैं साध्वी बनी हूं कितनी परवश बन गयी हूं। कितनी पराधीन बन गयी हूं कि चलो तो ऐसा चलो, बैठो तो ऐसा बैठो। यह मत करो। वह मत करो। शृंगार मत करो। सज्जा मत करो। प्रक्षालन मत करो। कितनी परतंत्रता ! कितने अंकुश मेरे पर लग गये ! क्या हुआ ? मैं परतन्त्र बन गयी। बेचारी चली थी हल्की बनने के लिए और अधिक भारी बन गयी।
इसलिए दृष्टि-सम्पन्नता बहुत आवश्यक है साधना के मार्ग में । जब हमारी दष्टि-सम्पन्नता प्रकट नहीं होती, तब बहुत बार ऐसा होता है कि हल्का होने का प्रयत्न करते हैं, और अधिक भारी बन जाते हैं, उस गधे की भांति ।
हमें किनको हल्का करना है, इस विषय में बहुत बड़ी सूक्ष्मदृष्टि से काम लेना है। भारी कौन होते हैं ? हमारा शरीर भारी होता है, हमारा मन भारी होता है और हमारा श्वास भारी होता है। ये तीन हैं, जो कि भारी बनते हैं और साधना के लिए, भीतर प्रवेश के लिए या चेतना के जागरण के लिए, सबसे पहले इन तीनों को हल्का करना है। शरीर को हल्का करना है । यह सारी साधना की पद्धति है। आप सोचेंगे कि महावीर ने कहां कहा कि श्वास को हल्का करना है ? महावीर ने कहां कहा कि शरीर को हल्का करना है ? शायद यह प्रश्न न भी हो। क्योंकि तपस्या आपके सामने है। किन्तु महावीर ने कहां कहा कि मन को हल्का करना है ?
__ मैं समझता हूं कि अगर हम महावीर को ठीक समझें और उनके अन्तस्तल में जाकर समझें, केवल शब्दों की पकड़ में न समझे तो महावीर ने इन तीनों बातों
६ : चेतना का ऊर्वारोहण
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