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जाती है । वास्तव में यह भारीपन और हल्कापन, यही सब कुछ है, जो व्यक्ति के दो चित्र बना देता है, व्यक्ति को दो दिशाओं में प्रस्तुत कर देता है। __ इसलिए भगवान् महावीर ने श्राविका जयन्ती के उत्तर में कहा कि जीव जब भारी होता है, तब अप्रशस्त बन जाता है, और हल्का होता है तब प्रशस्त हो जाता है। आप जानते हैं कि हमारी कठिनाई क्या है ? यह भारीपन कठिनाई है। लाघव जैसे ही आता है, सारी समस्याएं दूर हो जाती हैं। महर्षि चरक ने लाघव को बहुत महत्त्व दिया है। उन्होंने कहा है कि लाघव स्वास्थ्य का पहला लक्षण है। स्वस्थ व्यक्ति कौन है ? जिसमें कि लाघव है। जिसमें गौरव आया कि अस्वस्थ बन गया। अस्वस्थ का लक्षण है गौरव। हम कहते हैं कि शरीर भारी हो गया। इसका मतलब यह हुआ कि बुखार आने की तैयारी। बुखार या ज्वर का पहला दूत है शरीर का भारी होना। शरीर भारी होते ही बेचैनी छा जाती है और हम अनुभव करते हैं कि मन बेचैन है । कुछ अटपटा-सा लग रहा है। यह भारीपन का कारण है। चरक ने जो स्वास्थ्य के लक्षण बतलाये या आसन, व्यायाम की जो निष्पत्तियां 'बतलाईं, उनमें पहला यह बतलाया-'लाघवं कर्मसामर्थ्यम्'। पहला लाघव । लघता उत्पन्न होती है, हल्कापन आ जाता है। जैसे ही हल्कापन होता है, हमें ऐसा महसूस होता है कि आज बहुत अच्छा-सा लग रहा है क्योंकि शरीर हल्का है।
वास्तव में ही हल्का बहुत सुखद होता है। भारीपन कभी सुखद नहीं होता। गौतम स्वामी ने भी जयन्ती जैसा ही प्रश्न भगवान महावीर से पूछा था"भन्ते ! जीव भारी कैसे होता है और हल्का कैसे होता है ?" भगवान ने एक रूपक में समझाया--"गौतम ! देखो, एक तुम्बी है और उस तुम्बी पर किसी आदमी ने घास लपेट दिया। मिट्टी लगा दी। सुखा दिया। फिर दूसरी बार उस पर मिट्टी का लेप किया। आठ बार इस प्रकार किया। तुम्बी काफ़ी भारी हो गयी। अब उस तुम्बी को लिया और पानी में छोड़ा। तुम्बी पानी के नीचे डूब गयी। जो तुम्बी तैरने वाली है और कहते हैं कि दूसरों को तैराने वाली है, वह तुम्बी डूब गयी, नीचे चली गयी। क्योंकि भारी हो गयी। कुछ दिन तुम्बी पड़ी रही पानी में । पड़े-पड़े उसका कुछ लेप उतर गया। फिर दूसरा उतरा, तीसरा उतरा और उतरते-उतरते सारे लेप उतर गये । तुम्बी हल्की हो गयी । तुम्बी फिर ऊपर आ गयी। जो डूबी, वह भी तुम्बी थी और जो ऊपर आयी, वह भी तुम्बी थी। तुम्बी एक थी। तुम्बी दो नहीं थीं। किन्तु जब तुम्बी भारी हो गयी, डूब गयी, तल में चली गयी। तुम्बी हल्की हुई, ऊपर आ गयी, सतह पर आ गयी।
यह जीव जब भारी होता है, अधोगति में चला जाता है। निम्न गति में चला जाता है। उसकी वृत्तियां निम्न बन जाती हैं, उसका चिन्तन निम्न बन जाता है। उसका आचरण निम्न बन जाता है । आचरण, विचार, संस्कार और
४ : चेतना का ऊर्ध्वारोहण
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