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संपादकीय
• स्वतंत्र है व्यक्ति
इच्छा और संकल्पशक्ति इसीलिए कर सकता है वह अपने लक्ष्य का निर्धारण अपनी मंजिल का अवधारण अपनी हंस-मनीषा से चुनता है उसका पथ तीव्र अभीप्सा से करता है अभिक्रम ।
० समस्या यह हैएक नहीं है पथ क्या सत्पथ ? क्या उत्पथ ? किसे चुने, किसे छोड़े जीवन दिशा किधर मोडे जीए संसार का जीवन या खोले उससे मुक्त वातायन एक है भोग की दिशा दूसरी है त्याग की दिशा एक है संसार-सम्मुख दूसरी है संसार-विमुख ।
० अध्यात्म की मंजिल है मुक्ति संसार की मंजिल है मुक्ति जहां मुक्ति है वहां शांति है जहां भुक्ति है वहां अशांति है मुक्ति श्रेय है इसीलिए वही प्रेय है मुक्ति अश्रेय है इसीलिए वह हेय है।
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