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________________ ५८ अवचेतन मन से संपर्क 'भाई ! जो कुछ तुम लेना चाहो, ले लो। जो कुछ तुम मुझे देना चाहो, दे दो। यह रहा कोरा कागज, मैं इस पर अपने हस्ताक्षर कर देता हूं। जो कुछ लिखना चाहो, लिख लो। आज से संघर्ष समाप्त कर दो।' वह भाई पिघल गया । दो क्षणों में वर्षों का संघर्ष मिट गया। ऐसा होता है चेतना के परिवर्तन से। सारे विवाद वस्तुनिष्ठ नहीं हैं, चेतनानिष्ठ हैं। हमारी सारी दृष्टि वस्तुनिष्ठ है । हम 'ऑब्जेक्ट' में उलझे हुए हैं, सब्जेक्ट की उपेक्षा किए हुए हैं। जैसे ही चेतना का परिष्कार होता है, विवाद सुलझ जाते हैं, जैसे कुछ था ही नहीं। यह व्यवहार का परिवर्तन चेतना के स्तर पर होता है । जो व्यक्ति ध्यान को निरन्तर चलाना चाहते हैं, उन्हें प्रति तीन मास से अपने व्यवहार का परीक्षण कर लेना चाहिए। उसे देखना चाहिए कि तीन मास में इस बार व्यवहार में कितना, क्या परिवर्तन आया है । यह टेस्ट होना चाहिए । स्वयं के द्वारा स्वयं का टेस्ट । अध्यात्म नीडम् ऐसे टेस्ट की व्यवस्था करे तो लोगों को लाभ हो सकता है। आज मेडिकल टेस्ट और साइकोलोजिकल टेस्टों की भरमार है। अध्यात्मिक टेस्ट को निकम्मा समझा जाता है । हम मेडिकल या साइकोलोजिकल टेस्ट में ही न अटके रहें। आदमी पर आज भी बाहर का प्रभाव है। जब पश्चिमी जगत् में मनोविज्ञान की मान्यता प्रतिष्ठित है तो भारत का आदमी उसकी बिना मीमांसा किए उसे ग्रहण कर लेता है। उसे ठुकराने का प्रश्न ही नहीं उठता। यदि आध्यात्मिकता की बात भी वहां से आती तो आदमी उससे चिपक जाता और 'साइकोलोजिकल टेस्ट' की भांति 'स्पिरीच्युएल टेस्ट' भी होने लगते । हम बाहर से आए हुए को अधिक महत्त्व देते रहे हैं और आज भी यही मनोवृत्ति बनी हुई है। . हमें प्रत्येक शिविरार्थी को अध्यात्मिक टेस्ट के लिये प्रेरित करना चाहिए, जिससे वह यह देख सके कि जीवन में क्रूरता कितनी कम हुई है, माया कितनी कम हुई है और ऋजुता कितनी बढ़ी है । लोभ कितना घटा है और निर्लोभता कितनी विकसित हुई है । आसक्ति कितनी घटी है और अनासक्ति कितनी आई है। इनका परीक्षण और निरीक्षण स्वयं के द्वारा हो। स्वयं बैरामीटर बने। ध्यान की फलश्रुति है----अध्यात्म का विकास । इस विकास के साथसाथ शारीरिक लाभ भी होते हैं, पर वह है सारा प्रासंगिक फल, गौण फल । ध्यान से रासायनिक परिवर्तन होते हैं और उनसे अनेक रोग मिटते हैं पर ध्यान का यह मूल उद्देश्य नहीं है । ध्यान का मूल उद्देश्य है व्यक्ति को यथार्थ से परिचित करना, यथार्थ में रह सकने की क्षमता प्रगट करना । भावनात्मक परिवर्तन ध्यान का मूल लक्ष्य है। यदि वह होता है तो शेष सारे परिवर्तन स्वत: होते रहते हैं । खेती ध्यान के लिए की जाती है, तूड़ी के लिये नहीं । धान होता है तो साथ-साथ तूड़ी भी होती है। यह अनिवार्यता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003084
Book TitleAvchetan Man Se Sampark
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size9 MB
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