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________________ १६८ अवचेतन मन से संपर्क जगाएं। जब संवेदनशीलता जाग जाती है तब व्यक्ति दूसरे के कष्ट को अपना कष्ट समझने लग जाता है और इस स्थिति में वह अनैतिक नहीं रह सकता । धार्मिक आदमी में यदि संवेदनशीलता न हो तो मानना चाहिए कि वह सही अर्थ में धार्मिक नहीं बना है। जब व्यक्ति में धार्मिक दृष्टि जागती है तब उसमें ये लक्षण प्रकट होते हैं मन की शांति, वैराग्य, अनाशक्ति, संवेदनशीलता, अनुकंपा करूणा । जब करूणा जागती है, संवेदनशीलता जागती है तब दूसरे का सुख - दुःख स्वयं का सुख-दुःख जैसा प्रतीत होता है । यही है नैतिक चेतना । संवेदनशीलता का अभाव ही अनैतिकता का कारण है । जो व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के सुख-दुःख का अनुभव नहीं करता, दूसरे के कष्ट को कष्ट नहीं मानता, दूसरे को रजकण जैसा तुच्छ मानता है, तब अनैतिकता की बात चलती है । प्रेक्षा ध्यान नैतिक चेतना के जागरण की प्रक्रिया है । जब हम श्वास, प्राणविद्युत् विभिन्न रसायनों तथा अन्यान्य प्रकंपनों को देखने में निपुण हो जाते हैं तब सामने वाले व्यक्ति की प्राणधारा का अनुभव करने में हमें सफलता मिल सकती है। जो व्यक्ति प्रेक्षा का अभ्यास करेगा, वह अपनी संवेदनशीलता को अवश्य ही जगा लेगा । वह निश्चित ही दूसरे व्यक्ति को देखने में सक्षम हो जाएगा। जो गहराइयों में उतरकर अपने आपको देखने लग जाता है, वह संवेदनशीलता से ओतप्रोत हो जाता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003084
Book TitleAvchetan Man Se Sampark
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size9 MB
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