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________________ अनेक रोग : अनेक चिकित्सा १४५ है तो उसके सहयोगियों को भी वश में करना होगा। पहले ही मूल पर हाथ डालने से निराश होना पड़ता है। सबसे पहले हम श्वास को पकड़ें । यह मन का परम सहयोगी है। जब श्वास पकड़ में आ जाएगा तो मन पकड़ में आ जाएगा। श्वासप्रेक्षा, दीर्घश्वासप्रेक्षा, समवृत्तिश्वासप्रेक्षा-ये सारे प्रयोग श्वास को वश में करने के प्रयोग हैं। इनसे श्वास पर ही नियंत्रण नहीं होता, मनोगुप्ति भी सधती है । मनोगुप्ति के लिए श्वास-संयम आवश्यक है। मेरा अनुभव यह है कि बिना श्वास को समझे कोई सीधा ध्यान में जाए तो वह सफल नहीं हो सकता । बिना श्वास को पकड़े मन की एकाग्रता नहीं सधती और बिना मन की एकाग्रता के कैसा ध्यान ? ___ ध्यान का अर्थ हैं-चित्त को शान्त और एकाग्र करना, किन्तु इतनी छोटी बात को साधने के लिए लेश्याध्यान, चैतन्य केन्द्रप्रेक्षा, शरीरप्रेक्षा, अन्तर्यात्रा, अनुप्रेक्षा, श्वासप्रेक्षा, एकत्व अनुप्रेक्षा, अनित्य अनुप्रेक्षा, संकल्पशक्ति का निर्माण आदि-आदि प्रयोग करने पड़ते हैं, तब कहीं ध्यान सधता है । मक्खन पाने के लिए कितना कुछ करना पड़ता है। पाना है केवल थोड़ा-सा मक्खन, पर उसकी प्राप्ति की प्रक्रिया बहुत लम्बी है । गाय-भैंस को पालना, दुहना, दूध को गर्म करना, जमाना, दही बनाना और फिर बिलौना करना। इतना करने पर ही मक्खन मिलता है। इतनी प्रक्रिया के बिना मक्खन नहीं मिलता। ऐसा नहीं होता कि आकाश में हाथ फैलाया और मक्खन मिल गया। कुछ लोग कहते हैं--ध्यान तो अप्रयत्न है। उसमें तो प्रयत्न को छोड़ना सिखाया जाता है। फिर उसकी प्राप्ति के लिए प्रयत्न क्यों किया जाए? ऐसा कहना सरल है। प्रयत्न तो करना ही पड़ता है। 'ठंडा उन्हा सब करे, इक मक्खन के काज'-यह उक्ति ध्यान पर भी लागू होती है। पानी में से कभी मक्खन नहीं निकलता। उचित उपादान हो और उचित प्रयत्न हो, तब ही मक्खन निकलता है। ध्यान की सिद्धि भी प्रयत्न सापेक्ष होती है । अन्यथा कौन इतने झंझट करता ? जो उपाय निर्दिष्ट किए हैं, उनके आलम्बन से नवनीत अवश्य प्राप्त होता है । प्रेक्षाध्यान करने वाले साधकों में यह निश्चय और विश्वास होना चाहिए कि वे अपने प्रयत्न में सफल होंगे और उन्हें जो पाना है वह अवश्य मिलेगा। हम इस तथ्य को समझें-बीमारियां जब अनेक हैं तो दवाइयां भी अनेक होंगी। इसी प्रकार अनेक प्रकार के मानसिक तनावों के लिए अनेक प्रयोग होंगे। अनेक प्रकार की क्षमता है और अनेक प्रकार की क्षमता के लिए अनेक प्रयोग होंगे। यह पूरा चित्र जब हमारे सामने होगा तब ध्यान करने वाला कभी उलझेगा नहीं। वह प्रत्येक प्रयोग को तत्परता के साथ करेगा और किसी न किसी प्रयोग को पकड़ कर अपने गन्तव्य तक पहुंच जाएगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003084
Book TitleAvchetan Man Se Sampark
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size9 MB
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