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अतीत और भविष्य का संपर्कसूत्र
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बोला - जहांपनाह ! असली और नकली का भेद जानना सरल नही है । आप दोनों हारों को खुले में रख दें। फिर मैं उनकी पहचान करूंगा । बादशाह ने दोनों हार खुले आकाश में रख दिए। कुछ समय बीता । एक हार पर भरे मंडराने लगे । उसमें गुंथे फूलों का पराग लेने के लिए एकत्रित हो गए। दूसरे हार पर एक भी भौंरा नहीं गया। बीरबल ने तत्काल भौंरे मंडराने वाले हार को लेकर बादशाह से कहा -- जहांपनाह ! यह हार असली है ।" बादशाह ने कहा- कैसे पहचाना तुमने ? बीरबल बोला- हुजूर ! इन फूलों में जीवनीशक्ति है, मकरंद है। मकरंद के भूखे भरे, इसके इर्द-गिर्द मंडरा रहे हैं । यह असली फूलों का हार है । दूसरा हार कागज के फूलों का बना हुआ है । उसमें जीवनी-शक्ति नहीं है ।
हमें असली और नकली का पता चल जाता है । चुम्बकीय शक्ति से, जीवन शक्ति से, सरसता से । किन्तु जब हमारा ध्यान जीवनी-शक्ति की ओर नहीं जाता है तब भेद करना कठिन होता है ।
निर्विकल्पता असली फूलों का हार है और सविकल्पता नकली फूलों का हार है । यह बाहरी बातों से बना हुआ है । बाहरी आघात - प्रत्याघात, संवेद, संवेग आते हैं, विकल्प बढ़ते हैं । यह सविकल्पता की स्थिति है । निर्विकल्पता की अवस्था को पहचान पाना असंभव तो नहीं, पर कठिन अवश्य है । उसकी एक पहचान है - जहां सर्दी, गर्मी, अन्धकार, प्रकाश आदि-आदि संस्पर्शो, संवेदों का अनुभव होता है वह निर्विकल्प अवस्था नहीं है। जहां हमें इस बात का भान है कि 'मैं हूं, मेरा शरीर है, यह स्थान है यह समय है'ये सारे अनुभव होते हैं, यह निर्विकल्प स्थिति नहीं है। जहां भीतर की क्रियाएं जाग रही हैं वह निर्विकल्प स्थिति नहीं है । विकल्प अवस्था में दो स्थितियां बनती हैं- एक चंचलता की और दूसरी वस्तु पर टिक जाने की । अनेक बातों पर टिकना चंचलता है और एक पर टिक जाना, दृढ़ता से टिक जाना चित्त का निरोध है, गहरी एकाग्रता है । चित्त भटकता रहता है, उसको एक आलंबन देकर उस पर टिकाना है । श्वास उसको टिकाने का अच्छा आलंबन बनता है। श्वास पर जब चित्त टिकता है, तब दो बातें होती हैं। पहली बात है कि मन को बैठने के लिए अच्छा स्थान मिल गया और दूसरी बात है कि जैसे ही मन श्वास पर टिकता है नाड़ी संस्थान स्थिर होने लग जाता है । चित्त टिका और श्वास की गति मन्द हो गई । श्वास की गति का मन्द होना या दीर्घ होना चित्त का श्वास पर टिकने से संबंधित है । श्वास- संयम से, श्वास की दीर्घता से नाड़ी-संस्थान की चंचलता अपने आप कम हो जाती है । यह एक सुव्यवस्थित प्रक्रिया है, एक उपाय है, मार्ग है । इसके द्वारा चित्त की चंचलता को कम किया जा सकता है ।
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