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समस्या का मूल: परिग्रह
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जाए तो वह तुम्हारी इच्छापूर्ति के लिए पर्याप्त नहीं होगा। वह तुम्हें कभी त्राण भी नहीं दे सकेगा ।
राजन् ! एक दिन इस धन और कामनाओं को छोड़कर मरना होगा। एक धर्म ही त्राण है, दूसरा कोई त्राण नहीं दे सकता। जैसे बंधन को तोड़कर हाथी अपने स्थान (विंध्भारवी) में चला जाता है वैसे ही कामनाओं को छोड़कर संयम और धर्म का आचरण कर हमें अपने स्थान (मोक्ष) में चले जाना चाहिए। यह पथ्य मैंने ज्ञानियों सुना है ।
से
वंतासी पुरिसो राय ! न सो होइ पसंसिओ। ग्राहणेण परिच्चत्तं धनं मादाउमिच्छसि ।।
सव्वं जगं जइ तुह, सव्वं वा वि धणं भवे । सव्वं पि ते पज्जत्तं, नेव ताणाय तं तव ।।
मरिहसि रायं जया तया वा, मनोरमे कामगुणं पहाय ।
एक्को धम्मो नरदेव ! ताणं, न विज्जई अन्नमिहेह किञ्चि ॥
नागोव्व बंधणं छित्ता, अप्पणो वसहिं वए। एयं पत्थं महारायं ! उसुयारित्ति मेसुयं ॥
रूपान्तरण
महारानी कमलावती का उपदेश सुन राजा इषुकुमार प्रतिबद्ध हो गया। राजा इषुकुमार और रानी कमलावती -- दोनों संयम के पथ पर प्रस्थित हो गए। भृगुपुत्रों का वैराग्य माता-पिता एवं राजा-रानी के रूपान्तरण का हेतु बन गया । उनके वैराग्य और
संकल्प ने मूर्च्छा की मनोवृत्ति को पराजित कर दिया । अपरिग्रह और अमूर्च्छा की चेतना के आलोक से वे ज्योतिर्मय बन गए, समस्याओं का अंधकार विलीन हो गया। वह आलोक आज भी दुनिया को प्रकाशित करने वाला है, मूर्च्छा से विरत होने की प्रेरणा देने वाला है।
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