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समस्या का मूल: परिग्रह
प्राणी थे, उनकी सारी कामवृत्ति समाप्त हो गई। सेक्स का सम्बन्ध व्यक्ति के तापमान से है। तापमान के नीचे गिर जाने पर भी अधिकार की भावना उनमें बनी रही। इस विषय पर वैज्ञानिकों ने बहुत गहरा अध्ययन किया है, उनका निष्कर्ष है - अपने अधिकार को, अपने निवास स्थान को छोड़ना कोई पसन्द नहीं करता ।
आगार : अनगार
दो महत्त्वपूर्ण शब्दों का चुनाव किया गया-- आगार और अनगार ।
अनगार वह है, जिसने अधिकार की वृत्ति को समाप्त कर दिया, घर को छोड़ दिया। अनगार का अर्थ है -- मूल मनोवृत्ति पर प्रहार करने वाला। चिड़िया घोंसला बनाती है। पशु घूरी बनाते हैं। चिड़िया पेड़ पर बैठेगी और एक प्रकार की आवाज करेगी, उसका अर्थ है --इस टहनी पर मेरा अधिकार हो गया है। अब कोई इस पर बैठने का प्रयास न करे। कुछ पशु ऐसे हैं, जिनमें गंध की ग्रंथि होती है। शेर के मूत्र में गंध होती है । सब पशु समझ जाते हैं--वहां शेर रहता है, उस ओर नहीं जाना है। शेर अपना अधिकार जताता है गंध के द्वारा ।
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छोटे से छोटे प्राणी में अपना घर बनाने की वृत्ति है, अपना अधिकार जताने की मनोवृत्ति है । बहुत कठिन बात है आगार को त्यागना । प्राणी की मूल मनोवृत्ति है घर पर अधिकार करना । जिसने यह अधिकार छोड़ दिया, वह अनगार हो गया, उसने एक नई यात्रा शुरू कर दी ।
परिग्रह : तीन प्रकार
जैन तीर्थकरों ने दो मूल दोष बतलाए - आरंभ और परिग्रह । इनमें भी मूल हैं परिग्रह । हमारी धारणा पदार्थ पर अटकी हुई है । पदार्थ परिग्रह है पर मूल परिग्रह नहीं है। परिग्रह के तीन प्रकार हैं-कर्म, शरीर और पदार्थ । जड़ में है कर्म। जहां से मूर्च्छा और अधिकार की भावना आ रही है। दूसरा परिग्रह है शरीर । तीसरा परिग्रह है पदार्थ -- धन, धान्य, मकान आदि । आदमी घर छोड़कर भी शरीर की आसक्ति को नहीं छोड़ता तो वह परिग्रह को नहीं छोड़ता । जो शरीर की आसक्ति को छोड़ देता है, वह होता है पूरा अनगार । जब शरीर की आसक्ति छूटेगी तब दूसरे परिग्रह छूटेंगे इसीलिए जैन आचार्यो ने भेद-विज्ञान पर बहुत बल दिया। हम भेद विज्ञान का अभ्यास करें, परिग्रह की वृत्ति पर प्रहार होगा। यह भेद विज्ञान अनेक बीमारियों की चिकित्सा भी है, पर इसके लिए प्रयोग करना आवश्यक है, अन्तर के रसायनों को बदलने की प्रक्रिया का अभ्यास करना अपेक्षित है। विज्ञान कहता है--एक लाख से ज्यादा प्रकार के प्रोटीन हमारे शरीर के भीतर बनते हैं। रसायनों से भरा पड़ा है हमारा शरीर ।
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