________________
मुक्ति की प्रेरणा
की पूर्ति का साधन है और धर्म मोक्ष की पूर्ति का साधन । जब मोक्ष की प्रेरणा जागती है, काम की प्रेरणा सो जाती है। जब काम की प्रेरणा जागती है, मोक्ष की प्रेरणा सो जाती है। मोक्ष की प्रेरणा के जागने का अर्थ है- जीवन में धर्म का अवतरण । भृगु परंपरा का चित्रण
भारतीय जीवन के उस युग को देखें, जिस समय भृगुओं की परंपरा विकसित थी। महाभारत, मार्कण्डेय पुराण और उत्तराध्ययन में भृगुपरंपरा का उल्लेख है। महाभारत में कहा गया- भृगु परंपरा ने श्रमण परंपरा, मोक्ष और आत्मा का समर्थन किया है। मार्कण्डेय पुराण में भी पिता और पुत्र का संवाद है। उसमें सारी लौकिक मान्यताओं का निरसन किया गया है। महाभारत शान्तिपर्व का प्रसंग है-उसना भार्गव दानवों को सरंक्षण देते थे। प्रश्न हुआ सब देवताओं का सहयोग कर रहे थे और भार्गव दानवों को संरक्षण दे रहे थे ? यह भृगु की परंपरा है। दानव श्रमण जाति के लोग रहे हैं। बड़ी उच्च परंपरा रही है दानवों की। हम आज दानवों की बात छोड़ दें। एक समय था जब दानव उच्च, सभ्य और शिष्ट जाति थी। उसने आत्मा और मोक्ष की परंपरा का उन्नयन किया था। यह एक तथ्य है- परास्त होने पर शब्द का अपकर्ष हो जाता है। आर्य शब्द का भी बहुत अपकर्ष हुआ है। उत्तराध्ययन का चौदहवां अध्ययन भृगुपुत्र का अध्ययन है। उसमें भारतीय दर्शन की दो परंपराओं का चित्रण है और उस चित्रण में मोक्ष की प्रेरणा का स्वर प्रस्फुटित हुआ है।
Jain Education International
५१
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org