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मुक्ति की प्रेरणा
की होती हैं। एक अभिप्रेरणा है, जो अवस्था को प्रेरित करती है। एक अभिप्रेरणा व्यवहार को अभिप्रेरित करती है। जो अभिप्रेरणा व्यवहार का हेतु है, वह मनुष्य को शांत एवं संतुष्ट करती है।
मनोविज्ञान ने अभिप्रेरणा की व्याख्या तो की पर व्यक्ति के मन में अभिप्रेरणा क्यों जागती है, इसका कोई समाधान नहीं दिया। किसी व्यक्ति के मन में मोक्ष की प्रेरणा क्यों जागती है ? त्याग और परमार्थ की प्रेरणा क्यों जागती है ? मनोविज्ञान के पास इस प्रश्न का कोई समाधान नहीं है ।
कर्मशास्त्र : मनोविज्ञान
भारतीय चिन्तन परम्परा में कर्मशास्त्र को बहुत मूल्य दिया गया है। यह बहुत बड़ा मनोविज्ञान - शास्त्र है। पश्चिम के मनोविज्ञान और भारतीय कर्मशास्त्र को एक ही शाखा निरूपित किया जा सकता है। कर्मशास्त्र की गहराई में जितने जैन आचार्य गए हैं, उतना कोई दर्शन नहीं जा पाया । कर्मशास्त्र गणित का इतना जटिल विषय है कि गणित का प्रखर विद्वान् हुए बिना कर्मशास्त्र को समझ पाना ही कठिन है।
आचार्य ने शिष्य के प्रश्नको समाधान देते हुए कहा -- काम मोह के द्वारा प्रवर्तित है और मोक्ष स्वभाव के द्वारा प्रवर्तित है । इस हेतु भेद के कारण अर्थित्व का भेद होता है।
मोहप्रवर्तितः कामः; मोक्षः स्वभाववर्तितः । हेतुभेदेन चार्थित्वभेदो लोके प्रविद्यते ॥
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प्रेरणा और उसका हेतु
व्यवहार, व्यवहार की प्रेरणा और प्रेरणा का हेतु-- इन तीनों की मीमांसा आवश्यक है। काम की प्रेरणा और काम का व्यवहार--ये दो बातें ठीक हैं पर यह प्रेरणा क्यों जाग रही है ? एक व्यक्ति के मन में काम की प्रेरणा जाग रही है और दूसरे के मन में वह प्रेरणा नहीं जागती । इसका कारण क्या है ? जिस व्यक्ति के अन्तःकरण में मोह प्रज्वलित होता है, उसमें काम की प्रेरणा जागती है। काम का व्यवहार, उसकी प्रेरणा और उस प्रेरणा का हेतु मोह - ये तीन तत्त्व मिलते हैं तब पूरी बात समझ में आती है।
स्वभाव है पारिणामिक भाव
इसी प्रकार मोक्ष का व्यापार और उसकी प्रेरणा का हेतु है आत्मा का स्वरूप -- पारिणामिक भाव । मोक्ष की प्रेरणा तब जागती है जब पारिणामिक भाव प्रबल हो जाता है । पारिणामिक भाव ही जीव के जीवत्व को बनाए रखता है। वह शाश्वत
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