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हरिकेशबल का जगा आत्मपुरुषकार पराजित जातिवाद का अहंकार । भृगुपुत्र / मृगापुत्र ने देखा अतीत कर अमिनिष्क्रमण, बने रागातीत । पा कमलावती का उद्बोध
इषुकार ने पाया संबोध ।
राजर्षि संजय और गर्दभालि का प्रेरक संवाद सम्राट श्रेणिक को मिला नया तत्त्ववाद ।
समुद्रपाल / अरिष्टनेमि
राजीमती/ रथेनेमि
हुए प्रबुद्ध संबुद्ध उजला आंगन
महका चंदन । प्रस्तुत है
अमर यश-गाथा
महाप्रज्ञ हैं उद्गाता नया संदर्भ / नया परिवेश
योगक्षेम वर्ष का अभिनव उन्मेष महाप्रज्ञ के प्रवचन वैशिष्टय का कालजयी अभिलेख |
पढ़ें चांदनी भीतर की
प्रगटे चांदनी भीतर की सार्थक हो मानव जीवन
उपलब्ध हो स्व वीक्षण महाप्रज्ञ की यही चाह हम सबकी बने राह ।
२१ सितम्बर, १६६२ जैन विश्व भारती, लाडनूं (राज०)
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मुनि धनंजय कुमार
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