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चांदनी भीतर की
को पकड़ ही नहीं पाता । जो मन से दुर्बल है, वह भी भयभीत रहता है। सारा जगत् मय से आकुल है। अभय वास्तव में वह होता है, जो न मूढ़ होता है और न जड़।
मूढ़ो नित्यं भयग्रस्तः, मूर्यो भाति भयद्रुतः। मनसा दुर्बलो भीतो, भयभीतमिदं जगत।। जड़ो भयास्पदं सम्यग, न गृह्णाति न चाभयः।
स एवास्त्यभयो लोके, यो न मूढो न वा जड़।। दूसरों को न डराएं
भगवान महावीर की साधना का एक महत्त्वपूर्ण सूत्र है--अभय । वह तभी सिद्ध हो सकता है, जब हम यह संकल्प करें-हम दूसरों को डराएंगे नहीं, सताएंगे नहीं, दूसरों को कष्ट नहीं देंगे, अपनी ओर से दूसरों का तिलमात्र भी अनिष्ट नहीं करेंगे। जैसे जैसे यह चेतना जागती जाएगी, अभय की चेतना अपने आप विकसित होती चली जाएगी। एक ओर अभय की अनुप्रेक्षा करें, दूसरी ओर आरम्भ और परिग्रह का भाव पुष्ट बनता चला जाए, तो अभय की साधना विफल हो जाएगी। हम भय और लोभ की भावना को पुष्ट न होने दें, अभय हमारे जीवन में स्वतः घटित होगा।
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