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________________ 28. कौन करता है धर्म 29. मन को बाहर मत जाने दो 30. उपदेश नहीं है द्रष्टा के लिए 31. वह है मेधावी 32. मुक्ति इसी क्षण में 33. धर्म का अर्थ 34. संधि को देखो 35. कहां है चेतना का आवास ? 36. पदार्थ मुक्त बनो 37. अप्रमाद और शान्ति 38. संधि-दर्शन 39. रहस्यपूर्ण सूत्र 40. 41. 42. 43. 44. 45. 46. 47. 48. 49. दुर्लध्य है काम 50. 51. 52. 53. 54. 55. 56. अप्रमाद से होता है प्रमाद का विलय मौलिक अधिकार का उल्लंघन न करें भय है प्रमत्त को दोहरी मूर्खता जाता है ज्ञानी कौन करता है दुःख का सृजन अहेतुक नहीं है आतुरता दुःख है संवेदन में अमर है आत्मा का विदेह अस्तित्व क्या बढ़ सकता है जीवन ? मानवीय स्वभाव सरल नहीं है काम का अतिक्रमण लोक की विपश्यना करो काम का जाल जैसा भीतर वैसा बाहर मतिमान बनो Jain Education International For Private & Personal Use Only 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 www.jainelibrary.org
SR No.003078
Book TitleApath ka Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size3 MB
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