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मौलिक अधिकार का उल्लंघन न करें
चक्षुष्मान् !
जीने की इच्छा एक मौलिक मनोवृत्ति है। यह पूरे जीव लोक में समान है।
इच्छा की विचित्रता होती है। सब में इच्छाएं समान नहीं होती। किन्तु जीने की इच्छा सब जीवों में समान है।
इस सचाई को खोजने के बाद अध्यात्म की भूमिका से यह घोषणा की गई- सब जीव जीना चाहते हैं, मरना कोई नहीं चाहता ।
एक छोटे से छोटा क्रीड़ा भी जीने के लिए प्रयत्न करता है।
उस प्रयत्न की अन्तर्ध्वनि है- किसी व्यक्ति को किसी भी प्राणी की जीने की इच्छा को कुचलने का अधिकार नहीं है।
मानवाधिकार का अभियान चलाने वालों की सफलता इस पर निर्भर है कि सब जीवों को जीने का अधिकार है।
जीव-मात्र की इच्छा के प्रति बरती जाने वाली लापरवाही क्रूरता पैदा करती है। मानवाधिकार का उल्लंघन उसी क्रूरता की वेदी पर होता है।
इस परिप्रेक्ष्य में महावीर का यह सूत्र बहुत महत्त्वपूर्ण है-लोक की संधि को जानकर, जीने की इच्छा प्राणी मात्र का मौलिक अधिकार है, यह समझकर आचरण और व्यवहार का निर्धारण करो
संधिं लोगस्स जाणित्ता सभी प्राणी जीना चाहते हैं इसलिए किसी के मौलिक अधिकार का उल्लंघन न करें।
1 सितम्बर, 1996 जैन विश्व भारती
STO) अपथ का पथ
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