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________________ चक्षुष्मान् ! अप्रमाद और शांति शान्ति खोज रहे हो तो अप्रमाद की खोज करो । अप्रमाद खोज रहे हो तो शान्ति की खोज करो । शान्ति और प्रमाद दोनों का सहावस्थान नहीं है । तुम्हारा अप्रमाद ही तुम्हें शान्ति की ओर ले जा सकता है। तुम अपने आपको भूलते जा रहे हो और शान्ति की खोज करते जा रहे हो - यह अपरिहार्य विरोधाभास है । शान्ति को देखो, अप्रमाद — अपनी स्मृति अपने आप स्फुरित होगी। शान्ति इसलिए उपलब्ध नहीं है कि प्रमाद है । प्रमाद इसलिए है कि तुम मृत्यु को नहीं देख रहे हो । तुम्हारी आत्म- - विस्मूति तुम्हारी चेतना के लिए आवरण बन रही है इसलिए तुम सचाई को स्वीकार नहीं कर रहे हो। मरणधर्मा शरीर में रहकर भी अमर की तरह व्यवहार कर रहे हो । यह अमरत्व की मिथ्या कल्पना प्रमाद की विष वल्ली को और अधिक बढ़ा रही है । प्रमाद की समस्या को सुलझाने के लिए भगवान महावीर ने कहाशान्ति की प्रेक्षा करो, मृत्यु की प्रेक्षा करो, अनित्य की प्रेक्षा करो, अप्रमाद (जागरूकता) अपने आप फलित होगा । संति मरणं संपेहाए, भेउरधम्मं संपेहाए । 1 मई 1996 जैन विश्व भारती अश का पश Jain Education International For Private & Personal Use Only 15 www.jainelibrary.org
SR No.003078
Book TitleApath ka Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size3 MB
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