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चक्षुष्मान् !
व्यक्ति का जीवन प्रसंगों, घटनाओं, निमित्तों और परिस्थितियों की प्रलंब श्रृंखला है ।
प्रिय प्रसंग आनन्द देता है और अप्रिय प्रसंग अरति अथवा दुःख । यह हमारा व्यावहारिक दृष्टिकोण है ।
अध्यात्म का रहस्य.
वास्तविक दृष्टिकोण यह है कि कोई भी प्रसंग न सुख देता है और न दुःख । उसे ग्रहण करने वाला सुख और दुःख पैदा करता है, सुखी और दुःखी बन जाता है ।
महावीर ने अध्यात्म के इस रहस्य को पुरस्कृत किया और
कहा-
क्या है अरति और क्या है आनंद ? तुम्हारी पकड़ ही है अरति और तुम्हारी पकड़ ही है आनंद ।
तुम घटना, प्रसंग और निमित्त को पकड़ो मत । तुम सुख और दुःख के चक्र के ऊपर उठ जाओगे । सदा चैतन्य में, आत्मानुभूति में लीन रहोगे ।
अपथ का पथ
का अरई ? के आणंदे ? एत्थंपि अग्गहे चरे । सव्वहासं परिच्चज्ज, आलीणगुत्तो परिव्वए ॥
1 अगस्त, 1994 अध्यात्म साधना केन्द्र, नई दिल्ली
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