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चक्षुष्मान् !
पूर्व और अपर—यह काल का चक्र है ।
अपर में जीने वाले कुछ लोग पूर्व या अतीत की स्मृति नहीं करते । उन्हें पता नहीं होता —अतीत कैसा था ? भविष्य कैसा होगा ?
भाग्य की कुश्री
कुछ लोग मानते हैं— जैसा अतीत था वैसा ही भविष्य होगा । यह अपरिवर्तनवादी दृष्टिकोण है ।
महावीर ने पुरुषार्थ के द्वारा परिवर्तन का प्रतिपादन किया । उनका साधना सूत्र था - स्मृति और कल्पना को अधिक महत्त्व मत दो, उन्हें सब कुछ मत मानो । वर्तमान की अनुपश्यना करो ।
जो तथागत होते हैं, वे अतीत और भविष्य को छोड़कर वर्तमान का जीवन जीते हैं ।
नियामक वर्तमान है। वर्तमान क्षण अतीत का परिष्कार कर सकता है, भविष्य को नया रूप दे सकता है ।
जो कर्म किया हुआ है, वह वैसा ही फल देगा, यह प्रतिपादन सापेक्ष है। यदि पुरुषार्थ के द्वारा बदला नहीं जाता है तो कर्म के अनुरूप विपाक होगा ।
पुरुषार्थ हमारे भाग्य की कुंजी है। वह कृत को भी बदल सकता है । साधना का यह शिखर सूत्र है 1
अवरेण पुव्वं ण सरंति एगे, किमस्सतीतं किं वागमिस्सं ? भासंति एगे इह माणवा उ, जमस्सतीतं जं आगमिस्सं ॥ णातीतमहं न य आगमिस्सं, अट्टं नियच्छंति तहागया उ । विधूतकप्पे एयाणुपस्सी, णिज्झोसइत्ता खवगे महेसी ॥
1 जून, 1994
अध्यात्म साधना केन्द्र, नई दिल्ली
अपथ का पथ
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