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। संपादकीय
• यौवन की दहलीज पर
उठता है एक अंत:स्वर प्रबल भावनात्मक संवेग जन्मता है मानसिक उद्वेग कामना का उद्दाम प्रवाह एक अतृप्त अबोली चाह उद्धत इन्द्रियां और मन उभरता है चिन्तनभोग जीवन का सार है सुख का संसार है यही है जीवन यौवन की अभिभाषा तृप्ति और सुख की लौकिक भाषा भोग का यह सतत अनुचिन्तन अब्रह्मचर्य को आमंत्रण । भिन्न है अध्यात्म की भाषा सख की अलौकिक परिभाषा वन्या भोग ही जीवन है? इसीलिए यौवन है? वह कैसा है सुख जिसकी परिणति है दुःख ? जो बढ़ाता है रोग वह कैसे काम्य है भोग? सुख वह है जो दुख: की परंपरा मिटाए। सदाचार वह है, जो जीवन को पवित्र बनाए। काम्य वह है, जो आरोग्य की धारा बहाए। इसीलिए ब्रह्मचर्य श्रेय है अध्यात्म साधक का उत्रेय है
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