SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 93
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नए शब्द की खोज करे ७९ मानता है । दूसरे व्यक्ति की धारणा उसके विपरीत है । उसे हिंसा में भी धर्म मानने का सूत्र मिला है । क्या अहिंसा धर्म को मानने वाला हिंसा धर्म को भी उसके समान मानेगा ? धर्म की अनेक धारणाएं एक-दूसरे के सर्वथा विपरीत हैं फिर उन्हें समान मानने की बात कैसे फलित होगी ? यदि सब धर्मों के प्रति समानता का भाव रखने का सिद्धान्त उपादेय हो तो भेद कहां होगा ? यदि भेद नहीं है तो इसका अर्थ होगा- विचार की स्वतन्त्रता नहीं है। यदि वैचारिक स्वतन्त्रता है तो भेद अवश्य होगा क्योंकि सबका सोचने का ढंग एक समान नहीं हो सकता । धार्मिक दृष्टिकोण में असमानता है फिर सब धर्मों के प्रति समानत्व की भावना कैसे पैदा होगी ? इस समानता की भूलभुलैया में आदमी को भटकाना क्या अच्छी बात है ? नए शब्द की खोज करें सब धर्मों में समानता के कुछ तत्त्व मिल सकते हैं । उन्हें खोजना आवश्यक है । असमानता के तत्त्वों को खोजना भी उतना ही आवश्यक है । उन्हें खोजे बिना हम धर्म या दर्शन के विचार-विकास का क्रम ही नहीं समझ पाएंगे | दार्शनिक युग में खंडन-मंडन का क्रम बहुत चला | जैन, बौद्ध, नैयायिक, वैशेषिक, सांख्य और वेदान्त- ये सब एक-दूसरे की मीमांसा करते रहे, पर यह सब विद्वानों के स्तर पर या बौद्धिक भूमिका पर चलता था ? सांप्रदायिक आवेश फैलाने और परस्पर सांप्रदायिक दंगे करवाने की बात उसके साथ जुड़ी हुई नहीं थी। हिन्दू और मुसलमान के कोई वैचारिक भेद की मीमांसा नहीं है, कोई दार्शनिक मीमांसा का प्रश्न नहीं है । इस संघर्ष को धार्मिक या सांप्रदायिक कहना भी उचित नहीं लगता । यह विशुद्ध अर्थ में जातीय संघर्ष है । हिन्दू और मुसलमानये दो जातियां बन गईं और दोनों अपने-अपने हितों या स्वार्थों की रक्षा के लिए जब तब मैदान में उतर आती हैं | इस मैदानी टकराहट को मिटाने के लिए सर्वधर्म समभाव या समानत्व जैसे शब्दों की व्यूह-रचना की गई । वह प्रयत्न सार्थक नहीं हुआ । यह उपयुक्त समय है, इस व्यूह-रचना को तोड़ यथार्थ की धरती पर अपने चरण टिकाएं । किसी नए शब्द की खोज करें जो लुभावना न हो, मोहक न हो, भ्रामक न हो, वास्तविकता को उजागर करता हो । यथार्थ को छूने वाली भाषा सब धर्मों के प्रति सापेक्षता का दृष्टिकोण । हमारी दृष्टि में यह यथार्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003069
Book TitleAmantran Arogya ko
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Food
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy