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________________ जावन आर जावका क बाच भदरखा खाच ५९ जरूरी बन गई । आज पूरे समाज में जीवन और जीविका का संघर्ष चल रहा है । जीविका अच्छी हो, इसकी चिन्ता माता-पिता को भी है और विद्यार्थी को भी है । जीवन अच्छा हो, इसकी चिन्ता माता-पिता को भी शायद कम है और विद्यार्थी को भी कम है । इस परिस्थिति में एक व्यवसायी मनोवृत्ति का विकास हुआ है। कहा जाता है- एक व्यवसायी मृत्यु के बाद यमराज के पास पहुंचा। यमराज ने उसके जीवन का लेखा-जोखा कर पूछा- 'तुम कहां जाना चाहते हो- स्वर्ग में या नरक में । व्यवसायी बोला- 'हुजूर ! जहां दो पैसे की पैदा हो । मुझे स्वर्ग या नरक से कोई मतलब नहीं है ।' इस मनोवृत्ति का विकास जीवन-विकास की सबसे बड़ी बाधा है । पदार्थ और पैसे की होड़ इसी मनोवृत्ति का परिणाम है । इस मनोवृत्ति ने और भी न जाने कितनी समस्याएं पैदा की हैं । क्या आज का चिन्तनशील युवा जीवन और जीविका के बीच कोई भेदरेखा खींचने की बात सोचेगा ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003069
Book TitleAmantran Arogya ko
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Food
File Size9 MB
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