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________________ १२. आग्रह जन्म देता है विरोधाभास का शुभ संकेत अच्छाई और बुराई की दुनिया के अपने-अपने नियम हैं । सारी दुनिया नियमों के अधीन चलती है । नियंता अनिवार्य नहीं है, नियम अनिवार्य है । नियम प्राकृतिक भी होता है । बीमार होना बुरी बात है, अपनी बीमारियों को खुलकर समझने का प्रयत्न करना अच्छी बात है । तथाकथित भगवान भी अपनी बीमारी का अनुभव कर रहे हैं, यह एक शुभ संकेत हैं । मुक्त यौन का समर्थन एक मानसिक बीमारी है । उसका समर्थन करने वाले ब्रह्मचर्य का मूल्य बखान रहे हैं । इसे अच्छा ही माना जाए । बीमार आदमी अपनी बीमारी का अनुभव करे, उसे बुरा क्यों माना जाना चाहिए ? लोग कहते हैं अमुक भगवान पहले ऐसा कहते थे, अब ऐसा कहते हैं । यह वैचारिक विरोधाभास और वाचिक विसंगति साधना के क्षेत्र में क्यों होनी चहिए ? इसका उत्तर देना मेरे लिए मुश्किल है। यह कह सकता हूं कि यदि वर्तमान में अच्छी बात कही जा रही है तो क्या पहले की बुरी बात को भुला देना अच्छा नहीं होगा । हमारा ध्यान विसंगति की अपेक्षा संगति पर अधिक केन्द्रित होना चाहिए । अस्वाभविक नहीं है विचार-परिवर्तन हर आदमी हर रोज बदलता है । यह स्वाभाविक नियम है । बदलने के साथ न बदलने का भी एक नियम है । न बदलने में विसंगति या संगति का प्रश्न ही नहीं है | यह प्रश्न बदलने के साथ जुड़ा हुआ है । विचार-परिवर्तन अस्वाभाविक नहीं है। वह अस्वाभाविक बनता है आग्रह के कारण । आभिग्रहिकी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003069
Book TitleAmantran Arogya ko
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Food
File Size9 MB
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