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निर्णायक स्वयं उलझा हुआ है २५
दोनों विस्मृति के गर्त में चले गए है । उनके अभाव में सहिष्णुता के विकास की. कल्पना नहीं की जा सकती ।
अज इतनी असहिष्णुता क्यों ? यह प्रश्न बार-बार उभरता है । इसका उत्तर कठोर जीवन से जुड़ा हुआ है । सहन करने की शक्ति का नाम है कठोर जीवन । कठोर जीवन जीने का अर्थ है सहन करने की शक्ति को बढ़ाना । जो कठोर जीवन से दूर भागता है वह सहिष्णुता से भी दूर भागेगा ।
मनुष्य और यंत्र-मानव
इस यंत्र-युग में यंत्र-मानव और मनुष्य में एक स्पर्धा हो रही है । समाज के लिए मनुष्य अधिक हितकर है या यंत्र-मानव । यह निर्णय जिसे करना है, वह स्वयं उलझा हुआ है । यंत्र-मानव बहुत काम देता है, शीघ्रता से काम करता है और थकान का अनुभव नहीं करता । मनुष्य में ये क्षमताएं इतनी नहीं हैं। उसमें एक अद्भुत क्षमता है और वह है निर्णय की शक्ति । यांत्रिकता और निर्णय- ये दोनों विरोधी छोर है | यांत्रिकता जड़ता है और निर्णय चेतना की अभिव्यक्ति है | मनुष्य में अन्य प्राणियों की अपेक्षा चेतना अधिक विकसित है । उसका नाड़ी-तंत्र भी अधिक शक्तिशाली है इसलिए वह विवेक कर सकता है, निर्णय ले सकता है । अनिर्णय की स्थिति में विकास के चरण आगे नहीं बढ़ सकते ।
निर्णय नेतृत्व का एक विशिष्ट गुण है । नेतत्व का अर्थ है आगे ले जाने की क्षमता । बहुत लोग संशय की कारा में बंदी बने रहते हैं । वे तथ्यों को जानते हुए भी किसी निर्णय पर नहीं पहुंच पाते । साहस के बिना यह संभव भी नहीं है | खतरा झेलने की शक्ति हो तभी कोई बड़ा निर्णय लिया जा सकता है | आज का मनुष्य मानसिक तनाव भोग रहा है, उच्च रक्तचाप और हृदय रोग से संत्रस्त है । इन सबके पीछे एक बड़ा हेतु है भय का वातावरण | आज का आदमी चारों ओर भय से घिरा हुआ है । वह निर्णय नहीं कर पा रहा है कि धन की लालसा को कम करे अथवा मानसिक तनाव से छुटकारा पाए । यह अनिर्णय की स्थिति ही उसे उलझन में डाले हुए है । क्या मनुष्य अपनी निर्णय-शक्ति का विकास करेगा ?
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