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४३. मानसिक आरोग्य और प्रत्याहार
प्रत्येक व्यक्ति मन का आरोग्य चाहता है | यदि उपयुक्त साधन न मिले तो यह चाह पूरी नहीं होती । हमें साधनों की जानकारी भी होनी चाहिए। उसका एक महत्त्वपूर्ण साधन है, प्रत्याहार या प्रतिसंलीनता । इन्द्रियां विषयों के साथ जितनी संपृक्त होंगी, उतनी ही बीमारियां बढ़ेगी, चंचलता बढ़ेगी, इसलिए एक सीमा तक इन्द्रियों का असंप्रयोग करना आवश्यक है | विषय अलग रहे, इन्द्रियां उसके साथ जुड़ें नहीं । यदि इन्द्रियां विषयों के साथ निरन्तर जुड़ी रहीं तो आसक्ति इतनी तीव्र बन जाएगी, मूर्छा इतनी सघन हो जाएगी कि मन बौखला उठेगा । अगर मन को स्वस्थ रखना है तो उसका सबसे अच्छा माध्यम हैविषय अलग रहे, इन्द्रियां अलग हों और मन अलग हो । यदि निरन्तर कूड़ाकरकट आता रहा तो मन कैसे स्वस्थ और स्वच्छ रह सकता है ? इन्द्रिय, विषय और मन को अलग रखने की विधि खोजी गई और उसका नाम दिया गयाप्रत्याहार ।
अन्यमनस्कता : प्रत्याहार
इन्द्रियों को विषय से अलग रखें, जोड़ें नहीं । वैसे भी आदमी कई बार इन्द्रियों को विषय से अलग रखता है । जब कभी आदमी शून्यता में बैठा होता है और सामने से कोई आदमी चला जाता है तो उसे पता नहीं चलता । इस स्थिति में उससे पूछा जाए-इधर से कोई व्यक्ति गया है ? उसका उत्तर होगामुझे पता नहीं । क्या वह झूठ बोलता है ? नहीं । वह शून्यता में था इसलिए उसे पता नहीं चला | शून्य अवस्था में कोई आदमी बैठा होता है तो सामने से गुजरने वाले व्यक्ति का उसे पता नहीं चलता, यह सचाई है । ऐसा भी होता
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