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मानसिक आरोग्य और अध्यात्म २११
से तुलना करें तो वही तालिका अध्यात्म के क्षेत्र में भी मिल जाएगी । यह एक ऐसा बिन्दु है, जहां स्वास्थ्य का विज्ञान और अध्यात्म विज्ञान—दोनों एक भूमिका पर आ जाते हैं | आयुर्वेद का सिद्धांत है-क्रोध मत करो । क्रोध एक बीमारी है । धर्म का सिद्धान्त कहता है---क्रोध मत करो । क्रोध एक बन्धन है । अन्तर सिर्फ भाषा का है | एक स्थान पर शब्द है बन्धन, दूसरे स्थान पर शब्द है रोग ! यह भूमिका का अन्तर हो सकता है किन्तु तात्पर्य में कोई अन्तर नहीं है । इसीलिए कहा गया-स्वस्थ रहना है तो क्रोध, लोभ का त्याग नितान्त जरूरी है।
मूल कारण को पकड़ें
यदि अध्यात्म का थोड़ा भी अध्ययन करेंगे तो पता चलेगा-बीमारी का यानी बन्धन का मूल कारण क्या है ? हम इस बात पर ध्यान दें । लम्बी तालिका पर जाएंगे तो समस्या पैदा हो जाएगी । उसे याद रखना भी मुश्किल है और उनसे बचने में भी कठिनाई है । तालिका को संक्षिप्त कर लें, छोटा कर लें तो बात पकड़ में आ जाएगी, मूल मर्म समझ में आ जाएगा । अध्यात्म के आचार्यों ने कहा-रागो य दोसो बिय कम्मबीयं । कर्म का बीज क्या है ? बंधन का मूल क्या है ? सिर्फ दो तत्त्व हैं-राग और द्वेष । राग और द्वेषये दो कर्म के बीज हैं, बंधन के बीज हैं | आयुर्वेद के आचार्य भी इसी बिन्दु पर पहुंचे हैं । उन्होंने कहा-हमने मन की बीमारियां बहुत गिना दी । संक्षेप में कहें तो ये सारी बीमारियां दो कारणों से होती हैं । एक कारण है इच्छा और दूसरा कारण है द्वेष । इच्छा यानि प्रियता, द्वेष यानि अप्रियता । प्रीति और अप्रीति ! प्रिय संवेदन और अप्रिय संवेदन | पागलपन का कारण
आज दुनिया में जो यह अतिशय पागलपन बढ़ा है, उसका कारण क्या है ? कारण दो ही हैं—असीम इच्छा और असीम द्वेष । प्रीति भी बहुत अधिक है और अप्रीति भी बहुत अधिक है । कुछ दिन पहले समाचार पत्र में एक समाचार पढ़ा-राजस्थान में मनश्चिकित्सालय कम हैं किन्तु पागलों की संख्या बेशुमार बढ़ती जा रही है । अनुशंसा की गई—सरकार पागलखाने और बनावाए । मनश्चिकित्सकों की नियुक्तियां की जाएं । हम मान लें-सरकार पागलखानो
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