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तन, मन और आत्मा का सामंजस्य १८९ शरीर को समझे बिना धर्म की पूरी बात समझ में नहीं आएगी । बहुत से लोग सीधे धर्म की बात को पकड़ लेते हैं, धर्म को मानकर चलते हैं किन्तु वे वास्तव में केवल धर्म का नाम लेते हैं, धर्म के मर्म को पकड़ नहीं पाते । मर्म को पकड़े बिना कोई भी बात ठीक नहीं बनती । यदि धर्म के मर्म को पकड़ना है तो हमें शरीर को समझना होगा । मर्म को पकड़ना बड़ा मुश्किल होता है । मूर्ख कौन
एक बार राजा ने अपने मंत्री से कहा- 'तुम मूों की सूची बनाओ ।' मंत्री ने इस आदेश को स्वीकार कर लिया । समय मिला एक सप्ताह का । संयोगवश दूसरे दिन घोड़ों का एक सौदागर आया । राजा के घोड़े दिखाए । पुराने जमाने के राजे-महाराजे घोड़ों के शौकीन हुआ करते थे । राजा को घोड़े पसंद आ गए । सारे घोड़ों खरीद लिये गए । सौदागर बोला-'महाराज ! मै अपने व्यापार के सिलसिले में बहुत घूमा हूं, किन्तु आप जैसा घोड़ों का पारखं कहीं नहीं मिला । मुझे खुशी है-मेरे घोड़ों को आपने पसंद किया किन्तु यदि आप मुझे पांच लाख मुद्राएं और दें तो मैं ऐसा बढ़िया घोड़ा लाऊंगा कि आप देखते रह जाएंगे ।' राजा ने अपने कोषाध्यक्ष को आदेश दिया—'व्यापारी के पांच लाख मुद्राएं दे दी जाएं ।' व्यापारी को मुद्राएं मिल गईं । व्यापारी चल गया । एक सप्ताह पूरा हुआ, मंत्री ने मूों की सूची राजा के सामने पेश कर दी । राजा ने सूची को देखा । मूों की सूची में पहला नाम राजा का था राजा यह देखकर अवाक् रहा गया । विस्मय से आंखें खुली रह गईं । मंत्र की ओर गहरी दृष्टि टिकाकर पूछा-'मूरों की सूची में सबसे पहला नाम मेरा ?
'हां महराज ! 'यह कैसे ?'
'महाराज ! धृष्टता क्षमा हो । एक दिन मैंने देखा—बाहर का व्यापारी आया । आप उसे जानते नहीं थे । नाम-गांव का कुछ पता नहीं । पहले में कभी उसे देखा नहीं । उसने पांच लाख मुद्राएं मांगी और आपने दे दीं । क्य आपको यकीन है कि वह लौटकर आएगा ? मैं निश्चयपूर्वक कह सकता है कि अब वह नहीं आएगा । इस प्रकार बिना सोचे-समझे किसी अजनबी व्यकि को पांच लाख मुद्राएं देने वाला मेरी दृष्टि में मूल् का सरदार ही होगा ।
कितनी बड़ी बात मंत्री ने राजा के सामने कह दी ।
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