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शरीर ही रोगी नहीं होता, मन भी रोगी होता है, भावनाएं भी रुग्ण होती हैं। वास्तव में भावना का रोग मन को रुग्ण बनाता है और मन का रोग शरीर को रुग्ण बनाता है। रोग का विशाल साम्राज्य है। रोग को निमंत्रण देना बहुत आसान है। बहुत कठिन काम है आरोग्य को आमंत्रण देना । प्रस्तुत पुस्तक में इस कठिन कार्य को सरल बनाने की प्रक्रिया है ।
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