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व्यक्तित्व के तीन प्रकार १७९
नामकरण का आधार
क्या जो सात्त्वि. 5, वह सात्विक ही रहता है ? जो राजसिक है वह राजसिक ही रहता है ? जो तामसिक है, वह तामसिक ही रहता है ? यह नहीं कहा जा सकता-एक व्यक्ति सदा सात्त्विक ही रहता है, राजसिक या तामसिक ही रहता है । जीवन के प्रातःकाल में जिस व्यक्ति को बहुत सात्त्विक देखा, जीवन के उत्तरार्द्ध में वह राजसिक बन जाता है और जीवन की सन्ध्या में वही व्यक्ति तामसिक भी बन जाता है। जिस व्यक्ति को जीवन के पूर्वार्द्ध में तामसिक देखा, वह जीवन के उत्तरार्द्ध में सात्त्विक बन जाता है । यह परिवर्तन होता रहता है इसीलिए चोर कभी साहूकार बन जाता है और साहूकार कभी चोर बन जाता है | डाकू संत बन जाता है । मनोदशा के आधार पर यह सारा परिवर्तन होता है। प्रश्न है-जब यह परिवर्तन होता रहता है तो फिर किसी व्यक्ति को सात्त्विक बनने का हेतु क्या है ? हम किसी व्यक्ति को क्यों सात्त्विक कहें ? सूक्ष्मता से चिन्तन किया गया तो पता चला कि इसका भी एक कारण है । एक ही दिन में आदमी तीन प्रकार की अवस्थाओं को भोग लेता है । किसे सात्त्विक माना जाए ? किसे राजसिक और तामसिक माना जाए? इसका बहुत अच्छा समाधान दिया गया-जिस व्यक्ति में जिस तत्त्व की बहुलता होती है, उसके आधार पर उसका नाम बन जाता है । जिस व्यक्ति में सत्त्वगुण की प्रधानता होती है, उसे सात्त्विक, जिस व्यक्ति में रजोगुण की बहुलता होती है उसे राजसिक और जिस व्यक्ति में तमोगुण की बहुलता होती है उसे तामसिक कहा जाता है । केवल प्रधानता के आधार पर यह नामकरण हुआ है ।
उदाहरण की भाषा
हम इसे उदाहरण की भाषा में समझें । एक व्यक्ति व्यापारी है | वह क्षत्रिय नहीं है, शूद्र नहीं है, ब्राह्मण भी नहीं है | क्या एक व्यापारी कभी पढ़ता नहीं है ? अध्ययन नहीं करता है ? एक व्यापारी अध्ययन भी करता है किन्तु जिस समय वह अध्ययन करता है, उस समय वह व्यापारी नहीं होगा, ब्राह्मण बन जाएगा । जिस समय वह अपने घर-परिवार की सुरक्षा का काम करेगा, क्षत्रिय बन जाएगा । जिस समय वह सफाई का काम करेगा, शूद्र बन जाएगा। मुख्यता के आधार पर यह नामकरण किया गया । एक आदमी को मूर्ख कहा
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