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आमंत्रण आरोग्य को
लिया गया था । कभी-कभी ऐसा भी होता है— मृत व्यक्ति को चिता पर लिटा दिया गया जलाने के लिए, अचानक वह उठकर बैठ जाता। ऐसी अनेक घटनाएं हो चुकी हैं ।
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हमारा सारा जीवन प्राण के आधार पर चलता है, किन्तु हम प्राण का संतुलन नहीं रख पाते । प्राण-शक्ति का अपव्यय बहुत करते हैं । बोलते हैं तो प्राणशक्ति खर्च होती है, चलते हैं तो प्राणशक्ति खर्च होती है, इन्द्रियों के उपयोग में प्राणशक्ति खर्च होती है किन्तु उसका अधिक व्यय न करें, उसे आवश्यकता से अधिक खर्च न करें। बोलना जरूरी है किन्तु क्या लगातार बोलना, जरूरत से ज्यादा बोलना जरूरी है ? सोचना जरूरी है किन्तु क्या दिनरात सोचते ही रहें ? सोचने की भी सीमा होनी चाहिए। आंख लगातार खुली रखना भी अच्छा नहीं है । प्राण-: ग-शक्ति का इन सारी ऐन्द्रयिक क्रियाओं से व्यय होता है ।
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आय और व्यय का संतुलन करें
प्राणशक्ति का अधिक मात्रा में व्यय करने वाला एक घटक है-आवेश । क्रोध, लोभ, भय – ये सब प्राणशक्ति का असीमित व्यय करते हैं । वासना, संभोग - ये प्राण ऊर्जा को बहुत खर्च करते हैं । ये सारे प्राणशक्ति को खर्च करने के रास्ते हैं । जो व्यक्ति मानसिक स्वास्थ्य चाहता है, उसे सबसे पहले ध्यान देना होगा - प्राणशक्ति का आवश्यकता से ज्यादा खर्च न हो । आयव्यय का संतुलन बिगड़ने का मतलब है - घाटा या दिवाला । हम प्राणशक्ति के आय और व्यय का संतुलन बिगाड़कर जीवन का दिवाला न निकालें । भोजन करना, श्वास लेना, ये प्राणशक्ति को बढ़ाने के उपाय हैं किन्तु यदि आय कम और व्यय ज्यादा होगा तो इसका मन पर प्रभाव पड़ेगा । हम कहते हैं— डिप्रेशन हो गया, मानसिक अवसाद हो गया, शिथिलता आ गई । इसका कारण हैप्राण शक्ति का असंतुलन । यदि हम मानसिक दृष्टि से स्वस्थ रहना चाहते हैं तो प्राण शक्ति का सन्तुलन बनाए रखें । यह सन्तुलन मानसिक स्वास्थ्य का महत्त्वपूर्ण उपाय है ।
२. सम्यक् श्वास
मानसिक स्वास्थ्य का दूसरा सूत्र है— सम्यक् श्वास । सही ढंग से श्वास
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