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अपना नियंत्रण अपने -द्वारा १६५
समाचार पत्र पढ़ते हैं तो पता लग जाता है कहां क्या हो रहा है ! दुनियाभर की गतिविधियों की जानकारी मिल जाती है | किन्तु मन पर कैसे काबू करना चाहिए, इन्द्रियों पर कैसे निग्रह करना चाहिए, यह पढ़ाई का काम नहीं है । यह विषय है साधना का । साधना के द्वारा जब अपनी धृति का विकास कर लिया जाता है, विषयों के होने पर भी उनसे दूर रहने की बात सीख ली जाती है तब जीवन की सफलता और सार्थकता असंदिग्ध हो जाती है ।
यह नहीं मान लेना चाहिए—एक दिन या दस दिन की साधना करने से धृति का विकास हो जाएगा । किन्तु जिसका यह लक्ष्य बन जाता है मुझे धृति का विकास करना है तो वह धीरे-धीरे सफलता का वरण कर सकता है | खीझ और रीझ
राजा ने एक व्यक्ति को फांसी का दण्ड दिया । फांसी पर चढ़ाने से पूर्व उसकी अंतिम इच्छा पूछी गई। उसने कहा-मैंने राजा की खीझ तो बहुत देख ली, अब रीझ देखने का मन है ।'
राजा ने उस व्यक्ति को हाथी के हौदे पर बिठाया, रत्नों से भरा कटोरा स्वयं अपने हाथों से दिया और कहा- 'जाओ ! सुख से रहो । कभी बुराई मत करना ।
जो मन की खीज देखता है उसे मन की रीझ देख लेनी चाहिए । जब हम मन की खीज देखते हैं, तो ऐसा लगता है, जैसे जीवन की संध्या पर जा रहे हैं किन्तु फांसी से पूर्व अंतिम इच्छा जाग जाए, मन की रीझ भी देख लें तो न जाने जीवन में कितनी ऊंचाइयों को छू लेने की स्थिति बन जाए ! यह खीज के बाद रीझ देखने की बात ध्यान-साधना द्वारा पाई जा सकती है ।
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