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अपना नियंत्रण अपने -द्वारा १६१
प्रशिक्षित है, अनेक करतब दिखाने वाला है, पर अपने कन्धे पर नहीं चढ़ सकता । वह दूसरे के कन्धे पर चढ़कर ही करतब दिखा सकता है । सुतीक्ष्णोऽपि असिधारा न स्वं क्षेत्तुमाहितव्यापारा-तलवार की तेज धार किसी को काट सकती है पर अपने-आपको नहीं काट सकती । मन अपने-आप पर कैसे नियंत्रण रखेगा ? बड़ा जटिल प्रश्न है । किन्तु अपने द्वारा अपना नियंत्रण हो सकता है । इन्द्रिय सापेक्ष : इन्द्रिय निरपेक्ष
मन का एक काम होता है इन्द्रिय सापेक्ष । इन्द्रियों ने जो कच्चा माल दिया, उसे पक्का बनाना मन का काम है । वह अच्छा है या बुरा है, यह सोचना मन का इन्द्रिय सापेक्ष काम है । एक मन का काम होता है-इन्द्रिय निरपेक्ष । इन्द्रियों की कोई अपेक्षा नहीं होती | मन स्वतन्त्र रूप से कार्य करता है । उसमें एक काम है इन्द्रिय-निग्रहः, यानि इन्द्रियों पर नियंत्रण करना । यह मन का स्वतंत्र कार्य है । इसमें इन्द्रियों की सापेक्षता नहीं है, केवल इन्द्रियों का नियंत्रण है । जैसे जीभ से काम लेना या नहीं लेना, बोलना या नहीं बोलना, चखना या नहीं चखना ? इसका चयन या निश्चय करना मन का काम है । इसे कहा जाता है इन्द्रिय-निग्रह । आयुर्विज्ञान का मत
मन का दूसरा काम है-स्वनिग्रह, अपने-आप पर निग्रह करना । चंचलता, उच्छंखलता यह मन का काम है तो अपने-आप पर नियंत्रण करना भी मन का काम है । इस बात की पुष्टि के लिए वर्तमान विज्ञान को भी देख लेना चाहिए । आयुर्विज्ञान के अनुसार हमारी बहुत सारी क्रियाओं का नियंत्रक है हाइपोथेलेमस । हाइपोथेलेमस एक प्रकार से नियंत्रण करने वाला है । भूखप्यास- दोनों का वह नियंत्रण करता है । नींद और जागरण का भी नियंत्रण वह करता है । सुख और पीड़ा का नियंत्रण भी वह करता है | संवेगों क नियंत्रण भी वह करता है । क्रोध को उद्दीप्त और शान्त करना भी उसका काम है । उसके दो कक्ष बने हुए हैं । एक का नाम है—ड्रोसोमिलियम और दूसरे का नाम है—डेन्ट्रोमिलियम । ड्रोसोमिलियम का काम है क्रोध को उद्दीप्त करन और डेन्ट्रोमिलियम का काम है क्रोध को शांत करना । बहुत बार गुस्सा ज्याद आता है | तब भीतर से एक आवाज आती है-बस ! रुक जाओ । इतन
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